महाराष्ट्र का सियासी संकट नेताओं के गुटबंदी और बयानबाजी से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 11 जुलाई की तारीख मुकर्रर की है. उधर, एकनाथ शिंदे अभी भी 30 से ज्यादा शिवसेना के बागी विधायकों के साथ असम में डेरा डाले हुए हैं. महाराष्ट्र में इतना कुछ होने के बाद भी प्रदेश के वो 6 किरदार (नेता) जो अपने व्यक्तित्व के उलट भूमिका निभा रहे हैं. आज उन्हीं 6 किरदारों के बार में बात करेंगे, जो महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र बिंदु में तो हैं, लेकिन किरदार बदला-बदला नजर आ रहा है.

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे –

विपक्षी दलों पर खुलकर हमलावर रहने वाले उद्धव ठाकरे भी बदले-बदले नजर आ रहे हैं. उद्धव ठाकरे पार्टी को बचाने की कोशिश में लगे तो दिखाई दे रहे हैं, लेकिन MVA सरकार का क्या होगा, इसपर उनका स्टैंड कुछ खास दिखाई नहीं दे रहा है. क्योंकि, उनके सिपहसलार संजय राउत का बयान “अगर बागी 24 घंटे के अंदर मुंबई आ जाते हैं तो हम MVA सरकार से बाहर निकलने के बारे में विचार करेंगे” गंठबंधन के साथियों को असमंजस की स्थिति में डाल दिया था. इससे सवाल उठता है कि अपने अलग तेवर के लिए जाने जाने वाले उद्धव ठाकरे भी अब बैकफुट पर आकर बल्लेबाजी कर रहे हैं, जिनका व्यक्तित्व हमेशा से फ्रंटफुट पर आकर खेलने का रहा है. चाहें बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ने का रहा हो या हनुमान चालीस पर राणा बंधुओं के खिलाफ कार्रवाई करवाने को लेकर, हर जगह वो फ्रंटफुट पर नजर आए. लेकिन, मौजूदा समय में वो अपने तेवर के विपरीत शांत नजर आ रहे हैं.

एकनाथ शिंदे –

शिवसेना के ढाल कहे जाने वाले एकनाथ शिंदे ने बगावत कर अपने व्यक्तित्व के उलट काम किया है. उद्धव के सिपहसलारों में से एक शिंदे के बदले-बदले सुर MVA सरकार को संकट में ला दिया है. वो अभी भी 30 से ज्यादा शिवसेना के बागी विधायकों को लेकर असम में डटे हुए हैं.उद्धव ठाकरे के करीबी रहे एकनाथ शिंदे ने बागी होकर बता दिया है कि वो उद्धव के साथ नहीं बल्कि हिंदुत्व के मुद्दे पर साथ हैं. क्योंकि, उन्होंने एक बयान में कहा था कि शिवसेना अब अपने हिदुत्व के एजेंडे से दूर जा रही है, इसलिए इसे बचाना जरूरी है. कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि एकनाथ शिंदे उद्धव के प्रति वाफादार नहीं थे बल्कि हिदुत्व के मुद्दे पर उनके साथ थे. यानी की जो अभी तक उनका व्यक्तित्व समझा जाता था वो बिल्कुल नहीं. उनका भी व्यक्तित्व पूरी तरह से बदला-बदला नजर आ रहा है.

NCP प्रमुख शरद पवार –

शरद पवार का नाम सिर्फ महाराष्ट्र की राजनीति तक सीमित नहीं है. उनका नाम देश की राजनीति में शामिल अग्रणी नेताओं में शुमार है. विपक्ष को एक करने की बात हो या तीसरा मोर्चा बनाने की हर जगह उनकी उपस्थिति दर्ज रहती है. महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के उदय के पीछे भी उन्हीं का हाथ था. बताया जाता है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के हाथ से सत्ता हथियाने की पूरी रणनीति उन्हीं की थी. उन्होंने हर कदम पर उद्धव ठाकरे की सरकार चलाने में मदद की. हालांकि, ये जरूर है कि उन्होंने अंतिम समय तक उद्धव ठाकरे का साथ देने का वादा किया है, लेकिन MVA सरकार के अस्तित्व पर उन्होंने कोई ठोस जवाब नहीं दिया है. इस लिए हम कह रहे हैं कि इस संकट में शरद पवार का किरदार उनके व्यक्तित्व से अलग नजर आ रहा है.

देवेंद्र फडणवीस –

महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर होने के बाद से देवेंद्र फडणवीस हमेशा से हर मुद्दे पर खुलकर बोलते रहे हैं. “MVA सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी, उद्धव ठाकरे ने धोखा दिया, उद्धव ठाकरे सरकार नहीं चला पाएंगे, MVA की सरकार बीच में ही गिर जाएगी” जैसे कई बयान देवेंद्र फडणवीस के मीडिया में सामने आए. लेकिन, जब हकीकत ये है कि उद्धव सरकार पर संकट है, तो देवेंद्र फडणवीस का कोई भी बयान सामने नहीं आया है, जो उनके व्यक्तित्व से बिल्कुल अलग है. ऐसे में सवाल उठता है कि हर दिन MVA सरकार को गिराने की तमन्ना रखने वाले देवेंद्र फडणवीस आज चुप क्यों हैं? यानी ये भी अपने व्यक्तित्व से अलग हटकर काम कर रहे हैं.

मनसे प्रमुख राज ठाकरे –

मनसे प्रमुख राज ठाकरे का व्यक्तित्व भी महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट में जुदा-जुदा नजर आ रहा है. शिवसेना पर हमलावर रहने वाले राज ठाकरे इस पूरी सियासत में कहीं नजर नहीं आ रहे हैं. ना तो उनका कोई बयान सामने आया है और ना ही कोई एक्टिविटी नजर आई है. क्योंकि, उद्धव सरकार की हर नीति और नियम पर सवाल उठाने वाले राज ठाकरे की चुप्पी ये बता रही है कि उनका किरदार भी इस संकट में बदल गया है.

संजय राउत –

शिवसेना और उद्धव ठाकरे के विश्वस्त माने जाने वाले संजय राउत की भी नजर सियासी संकट से उलट देख रही है. विपक्ष पर तीखे और जवाबी हमला करने वाले संजय राउत कहीं न कहीं खुद को बचते-बचाते दिख रहे हैं. महाराष्ट्र में इतना कुछ होने के बावजूद भी उन्हें बीजेपी के एक भी नेता के खिलाफ खुलकर बोलते नहीं सुना गया.शिवसेना का मुख पत्र ‘सामना’ के जरिए बीजेपी पर हमेशा हमलावर रहने वाले संजय राउत अब बैलेंस बनाकर चलते दिख रहे हैं, जो उनके व्यक्तित्व को सूट नहीं करता है.