पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों के एकता की कोशिश कर रही है। इसके लिए 23 जून को पटना में ‘एकता भोज’ का आयोजान कर रहे हैं। जदयू के दावे के अनुसार, इसमें देश भर के प्रमुख विपक्षी नेता पांत में बैठकर खाने को तैयार हो गये हैं। इस भोज में एकमात्र मीनू होगा- भाजपा के सामने से सत्ता की थाली खींच लो। यह राजनीति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन भाजपा विपक्षी दलों के पैरों तले जमीन लूट लेनी की रणनीति में जुट गयी है।
हम बिहार के संदर्भ में बात करें तो नीतीश कुमार पिछड़ों के आरक्षण को एक बड़े मुद्दे के तरह इस्तेमाल करते हैं। महागठबंधन का केंद्रीय एजेंडा ओबीसी आरक्षण भी है, जिसे पिछड़ा और अतिपिछड़ा के रूप में अलग-अगल दिया जाता है। जातीय गोलबंदी में ओबीसी आरक्षण एक मजबूत कारक है। मंडल आयोग की अनुशंसा लागू होने के बाद से पिछड़ा गोलबंदी केंद्र और राज्यों की राजनीति को प्रभावित करती रही है। भाजपा के उग्र हिंदुत्व के खिलाफ समाजवादी विचारवाली पार्टिंया जाति को हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। भाजपा अब इसी जाति हथियार को भोथरा करने में रणनीति में जुट गयी है और पूरी योजना बना रखी है।
हाल ही भाजपा के तीन वरिष्ठ नेताओं ने आरक्षण के मुद्दे को विभिन्न तरीके से घेरने की कोशिश की। इसमें सबसे प्रमुख हैं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा। उन्होंने हाल ही अपने एक बयान में क्रीमीलेयर को लेकर बड़ा सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि बिहार में नन क्रीमी लेयर को ओबीसी का प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बहुत बड़ा विश्वासघात कर रहे हैं। ओबीसी के हकों का गला घोंटा जा रहा है। दूसरे बड़े नेता हैं भूपेंद्र यादव। केंद्रीय मंत्री श्री यादव ने गैरभाजपा शासित राज्य सरकारों पर पिछड़े वर्गों को संवैधानिक रूप से मिले लाभ से वंचित करने का आरोप लगाया है। इसमें बिहार भी शामिल है। बिहार के संदर्भ में उन्होंने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि नन क्रीमीलेयर जाति प्रमाण पत्र बनाते समय कृषि और वेतन की आय को शामिल किया जा रहा है, जो नियमों के खिलाफ है। इसके साथ ही सांसद सुशील मोदी ने भी इसी तरह के आरोप लगाये हैं। हाल ही में सुशील मोदी ने भी एनसीबीसी की रिपोर्ट के हवाले से ही राज्य सरकार पर कुर्मी जाति के लोगों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया था। अपने आरोप में श्री मोदी ने मुख्यमंत्री के स्वजातीय युवाओं को टारगेट कर कुर्मी आधार में सेंध लगाने की कोशिश की है। बिहार में आज लगभग 55 फीसदी आबादी पिछड़ी जातियों की है। केंद्रीय और राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण के लिए जाति प्रमाण पत्र और नन-क्रीमीलेयर प्रमाण पत्र की जरूरत होती है।
भाजपा नेताओं का आरोप कितना सही है, इसका जवाब राज्य सरकार ही दे सकती है। लेकिन जदयू की ओर से भाजपा के आरोप का अब तक खंडन नहीं किया गया है और सरकार ने इन आरोपों के संबंध में कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया है। आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है और इस मुद्दे पर महागठबंधन अब तक अपना कॉपीराइट समझता रहा है, लेकिन भाजपा अब उस मुद्दे पर भी सत्तारूढ़ दल को अनुत्तरित कर दिया है।
सरकार के नौकरशाह और पार्टियों के प्रवक्ता कान में रुई डालकर सत्ता का आनंद भोग रहे हैं। विपक्ष के आरोपों की अनदेखी कर रहे हैं। लेकिन भाजपा उसी मुद्दे पर नीतीश कुमार की सरकार और गठबंधन की राजनीतिक जमीन पर भगवा लहराने के अभियान में जुट गयी है। उधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी जमीन संभालने के बजाये दूसरे की जमीन की पंचायती में व्यस्त हैं। यह महागठबंधन की सेहत के लिए फायदेमंद है या हानिकारक ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।