पटना : बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सभी व्रतियों को प्रणाम निवेदित करते हुए, समस्त देशवासियों को लोक-आस्था के महापर्व छठ की हार्दिक शुभकामनाएँ दी है। अपने संदेश में उन्होंने कहा है कि पंडित-पुरोहित के विना ही अत्यंत श्रद्धा और शुचिता के साथ किया जाने वाला यह महापर्व अद्वितीय है, जो समस्त संसार को यह महान संदेश भी देता है कि जो वरेण्य हैं, लोक-मंगलकारी और पूज्य हैं, वे अपने अवसान के काल में भी पूज्य ही होते हैं, पूजे जाने चाहिए !

संसार जहाँ उगते हुए सूर्य की पूजा कारा है, बिहार में डूबते हुए सूर्य की भी पूजा करना सिखाया है। डा सुलभ ने यह भी बताया है कि सूर्योपासना के इसी पर्व में, छठी माता की भी पूजा होती है, जो शिशुओं की रक्षिका और संरक्षिका मानी जाती हैं। ये महर्षि कश्यप् और देवमाता अदिति की मानस पुत्री हैं। इसीलिए अदिति-पुत्र आदित्य, अर्थात् सूर्य की बहन भी हैं। इनका नाम कात्यायिनी है। इन्हें प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न माना जाता है, इसीलिए इन्हें षष्टी-माता या छठीमाता कहा जाता है। व्रतीगण संध्या-अर्घ्य के पश्चात रात्रि में अपनी संतति की रक्षा और समृद्धि के लिए इनकी विशेष पूजा करती हैं।