पटना : कदमकुआं स्थित बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की उपस्थिति में उत्साह-पूर्वक दीपोत्सव मनाया गया तथा बिहार समेत संपूर्ण संसार में प्रेम और सद्भाव की वृद्धि के साथ सुख-समृद्धि के लिए महालक्ष्मी से प्रार्थना की गयी।
इस अवसर पर अपने उद्गार में डा सुलभ ने कहा कि भगवान श्री राम लंका-विजय के पश्चात इसी दिन अर्थात कार्तिक अमावस्या की संध्या अयोध्या वापस लौटे थे। उनके आगमन की प्रसन्नता में संपूर्ण अयोध्या में दीप-वल्लरियाँ बिछाई गयी थीं, जिसने समस्त अंधकार को दूर कर दिया था। अयोध्या में मनाए गए उसी दीपोत्सव के प्रतीक-स्वरूप संपूर्ण भारत वर्ष में दीपावली की परंपरा आरम्भ हुई। कालांतर में इस दिव्योत्सव में, लौकिक समृद्धि, जीवन में प्रसन्नता और सुख-शांति के लिए धन और समृद्धि की देवी श्री महालक्ष्मी के पूजन की परंपरा भी जुड़ गयी। डा सुलभ ने कहा कि वस्तुतः यह पर्व असत्य पर सत्य के विजय के उत्सव के साथ अंधकार पर प्रकाश के विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। सूक्ष्म रूप में इस पर्व का निहितार्थ प्रत्येक मनुष्य के अंतर में स्थित दीप का प्रज्वलन है, कि जिससे मानव का अंतर और वाह्य-जगत दोनों ही प्रकाशवान रहे। जीवन दिव्यता से परिपूर्ण और प्रेम तथा ख़ुशियों से भरा हो। दुःख और विकार रूपी सभी अंधकार नष्ट हो जाएं तथा जीवन लोक-मंगलकारी बने। संपूर्ण मानव-जाति समस्त प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व के सिद्धान्त पर, प्रेम और सद्भाव पूर्ण जीवन यापन करे।
रविवार की संध्या आहूत इस दीपोत्सव में सम्मेलन के अधिकारियों ने मोमबत्ती जलाकर प्रकाश का आह्वान किया। सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह, भवन अभिरक्षक डा नागेश्वर यादव, प्रशासी पदाधिकारी सूबेदार नन्दन कुमार मीत, अमरेन्द्र कुमार, दिगम्बर जायसवाल, बीरेन्द्र प्रसाद, महेश प्रसाद आदि सम्मेलन कर्मी उपस्थित थे।