पटना : बोलने और सुनने की समस्याओं के निदान में श्रवण-वैज्ञानिकों की भूमिका और महत्त्व को अब पूरा संसार समझने लगा है। इसीलिए बड़ी तेज़ी से पूरी दुनिया में श्रवण-वैज्ञानिकों की मांग बढ़ी है। अमेरिका और यूरोप में सर्वाधिक कमाई करने वाले व्यावसायिकों में चौथे स्थान पर वाक् श्रवण-वैज्ञानिक हैं। वैश्विक मांग की तुलना में श्रवण-वैज्ञानिकों एवं स्पीच पैथोलौजिस्टों की संख्या बहुत कम है। बिहार में तो यह संख्या न्यूनतम है। पूरे बिहार में इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च नामक एक मात्र संस्थान है, जहां वाक् एवं श्रवण-स्नातक का पाठ्यक्रम संचालित होता है। यह बातें मंगलवार को बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च में संस्थान के ‘वाक् एवं श्रवण विभाग’ की रजत जयंती के साथ आयोजित ‘विश्व श्रवण-वैज्ञानिक दिवस’ समारोह में राष्ट्रपति-सम्मान से विभूषित और भारत सरकार के राष्ट्रीय संस्थान ‘अली यावर जंग राष्ट्रीय वाक् एवं श्रवण दिव्यांग संस्थान के पूर्व निदेशक डा अशोक कुमार सिन्हा ने कही। उन्होंने कहा कि जिन व्यक्तियों की श्रवण-क्षमता अच्छी होती है, उनकी आयु भी लम्बी होती है। कान में तेल डालने और मैल निकालने के लिए नुकीली चीजों का प्रयोग घातक होता है। 40 प्रतिशत वृद्धों में श्रवण-दोष पाए जाते हैं। कान के स्वास्थ्य के लिए भी प्रतिदिन व्यायाम आवश्यक है।

इस अवसर पर डा सिन्हा समेत बिहार के प्रथम श्रवण-वैज्ञानिक डा जवाहर लाल साह और संस्थान के प्रथम स्नातक डा विकास कुमार सिंह को ‘वाक् गौरव-सम्मान’ से अलंकृत किया गया। समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि बोलने और सुनने से संबंधित समस्याओं के निदान में और वाक्-श्रवण-दिव्यांगों के पुनर्वास में इस संस्थान के योगदान को समाज सदैव स्मरण रखेगा। समारोह के मुख्यअतिथि और बिहार स्वास्थ्य-विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डा एस एन सिन्हा ने कहा कि बिहार में वाक् श्रवण विशेषज्ञों की बहुत आवश्यकता है। इस अभाव की पूर्ति में योगदान देने वाला बिहार का यह संस्थान न केवल इसलिए कि उत्तर भारत का यह पहला संस्थान है, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और प्रशिक्षण के लिए भी प्रशंसनीय है। उन्होंने संस्थान प्रबंधन से इस विषय में स्नात्तकोत्तर और शोध के पाठ्यक्रम आरंभ करने का परामर्श दिया। उनका कहना था कि प्रत्येक व्यक्ति को शोर से बचना चाहिए। पूजा के दिनों में लाउड-स्पीकर की ध्वनि को भी कम रखना चाहिए। इसके शोर से भी श्रवण-क्षमता प्रभावित होती है।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कहा कि विगत 25 वर्षों में संस्थान के इस विभाग ने बिहार के युवाओं को प्रशिक्षित करने और वाक् और श्रवण-दोषों से पीड़ित व्यक्तियों की सेवा में जो कार्य किए हैं, वह गौरवादायक है। इस संस्थान के स्नातक पूरे देश में ही नहीं, अपितु दुनिया भर में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। इस संस्थान से हज़ारों नौजवानों के जीवन में बदलाव आया है। उन्होंने विभाग के रजत जयंती के अवसर पर सभी शिक्षकों, चिकित्सकों और छात्र-छात्राओं को बधाई और शुभकामनाएँ दी।

इस अवसर पर संस्थान के छात्र-छात्राओं ने स्वनिर्मित मॉडल की प्रदर्शिनी भी लगायी थी। प्रथम तीन स्थान प्राप्त करनेवाले समूह को पुरस्कृत किया गया। डा जवाहरलाल साह, डा विकास कुमार सिंह, विभाग के छात्र रणजीत गिरि, शौर्य साह, श्वेता कुमारी तथा निकिता कुमारी ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन महिमा झा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के प्रबंध निदेशक आकाश कुमार ने किया। संस्थान के पूर्ववर्ती छात्र और श्रवण-वैज्ञानिक डा अनु सिंह चौहान, डा धनंजय कुमार, डा अभिषेक कुमार, डा प्रशांत कौशिक, संस्थान के निदेशक-मण्डल की सदस्य किरण झा, आभास कुमार, मेनका झा, डा संजीता रंजना, डा रजनी झा, डा नवनीत कुमार, डा आदित्य ओझा, प्रो संतोष कुमार, प्रो मधुमाला, प्रो संजीत कुमार, प्रो जया कुमारी, देवराज, सूबेदार संजय कुमार समेत बड़ी संख्या में संस्थान के अधिकारी और छात्रगण उपस्थित थे।