पटना : संस्कृत और हिन्दी के उद्भट विद्वान आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा अलंकार-शास्त्र के भी महापण्डित थे। उन्हें पुरातन भारतीय ज्ञान का नूतन संस्करण भी कहा जा सकता है। भारतीय दर्शन और वैदिक-साहित्य का उन्हें गहरा अध्ययन था। वे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष तथा पटना और दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। भाषा-विज्ञान और साहित्यालोचन के भी वे यशस्वी विद्वान आचार्य थे। साहित्य की अनेक विधाओं में उन्होंने मूल्यवान सृजन किए। काव्य-शास्त्र, अलंकार और साहित्यालोचन पर लिखी गई उनकी पुस्तकें आज भी विद्यार्थियों के लिए आदर्श ग्रंथ हैं। नाटक, ललित निबन्ध समेत साहित्य की विभिन्न विधाओं में उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं, जो आज भी साहित्य संसार को एक अत्यंत मूल्यवान धरोहर के रूप में उपलब्ध है। यह बातें शुक्रवार को साहित्य सम्मेलन में आचार्य शर्मा 105 वीं जयंती पर पुस्तक-लोकार्पण-समारोह एवं लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, आचार्य शर्मा कुछ थोड़े से महापुरुष में से एक थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, कला, संगीत जैसे मनुष्य के लिए सर्वाधिक मूल्यवान तत्त्वों के संरक्षण और विकास में अर्पित कर दिया। वे सच्चे अर्थों में संस्कृति और संस्कार के पोषक संस्कृति-पुरुष थे।
इस अवसर पर, सम्मेलन द्वारा प्रकाशित, नवोदित लेखिका अनुभा गुप्ता की उपन्यासिका ‘बीस साल बाद’ का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक पर अपना विचार रखते हुए, डा सुलभ ने कहा कि विगत कुछ वर्षों में सम्मेलन की प्रेरणा से अनेक रुचि-सपन्न व्यक्तियों ने रचनात्मक-साहित्य में अपना योगदान देना आरंभ किया है। उनमे अनेक गृहिणियाँ भी हैं। उन्हीं में से एक अनुभा गुप्ता भी हैं, जो ‘अनु गुप्ता’ के नाम से सृजन कर रही हैं। लोकार्पित पुस्तक अपनी काया के कारण ‘उपन्यासिका’ की श्रेणी में आएगी। किंतु रोचकता और पठनीयता की दृष्टि से यह पुस्तक बहुत ही सफल मानी जाएगी। रहस्य-रोमांच से भरी इसकी कहानी पाठकों के मन में निरन्तर नूतन जिज्ञासाओं को जन्म देती रहती है।
बिहार सरकार में विशेष सचिव रहे सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा उपेंद्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि आचार्य शर्मा जी अद्भुत प्रतिभा के बहुभाषाविद विद्वान थे। एक व्यक्ति में इतने गुण हो, साहित्य और संस्कृति की अनेकानेक विधाओं पर एक समान अधिकार हो, यह दुर्लभ संयोग शर्मा जी में था। काव्य-अलंकार पर उनके कार्य आज भी शोधार्थियों के लिए आदर्श है। उन्होंने हिन्दी काव्य को स्तुत्य ऊँचाई प्रदान की। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, बच्चा ठाकुर, प्रो इंद्रकांत झा, वरिष्ठ शायर आरपी घायल, डा बी एन विश्वकर्मा, चंदा मिश्र आदि ने भी अपने विचर व्यक्त किए तथा लेखिका को शुभकामनाएँ दी।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, डा शंकर प्रसाद ने ‘दस्तक’ शीर्षक से, डा पूनम आनन्द ने ‘दांव’, विभारानी श्रीवास्तव ने ‘तारक’शीर्षक से, चितरंजन लाल भारती ने ‘बाज़ार के सच’, जय प्रकाश पुजारी ने ‘भाई’, श्याम बिहारी प्रभाकर ने ‘स्वार्थी’, कुमार अनुपम ने ‘जल-संरक्षण’, कमल किशोर ‘कमल’ ने ‘लाभडिंग की चाय’, शुभचंद्र सिन्हा ने ‘पथ-भ्रष्ट’, अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘तलाश’ हरेंद्र मिश्र ने ‘कुण्डली’, स्मृति कुमकुम ने ‘चायवाला’, राखी कुमारी ने ‘भगवान और भाव’ तथा बिन्देश्वर प्रसाद गुप्ता ने ‘कहिए, मानेंगे न’ शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा, बाँके बिहारी साव, डा रेणु मिश्र, परवीर कुमार पंकज, अमन वर्मा, सच्चिदानंद शर्मा, राहुल आनंद, कौशल किशोर, विजय कुमार दिवाकर, रेणु कुमारी, अनिल कुमार गुप्ता, एकलव्य केसरी, सबलेंडर कुमार सिंह, जितेंद्र कुमार, ममता सिन्हा, शर्मिला कुमारी, स्मृति राज, हरेंद्र सिन्हा, सांगीता वर्मा, दुःखदमन सिंह, मनोरमा तिवारी समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।