पटना : आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव होने का अर्थ था एक सजीव शब्द-कोश और साहित्य का पर्यायवाची शब्द ! बहुभाषाविद-मनीषी श्री सूरिदेव वास्तव में साहित्य और ज्ञान की संज्ञा थे। संस्कृत सहित अनेक भारतीय भाषाओं के वे महापण्डित और ‘प्राकृत’ तथा ‘अपभ्रंश’ के अंतिम अधिकारी विद्वान थे। वे सरस्वती के लोक-प्रसिद्ध वरद-पुत्र और एक साहित्यिक ऋषि थे। उन्होंने एक संत की भाँति साहित्य की साधना की।

यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आचार्य सूरिदेव की 98वीं जयंती पर आयोजित समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, 70 वर्षों से अधिक समय तक अविराम साहित्य-साधना में लीन रहने वाले आचार्यजी अपनी युवावस्था में, सम्मेलन-पत्रिका ‘साहित्य’ के वर्ण-शोधक के रूप में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की सेवा आरंभ की थी और सम्मेलन के प्रधानमंत्री के पद को भी सुशोभित किया। 91 वर्ष की आयु में भी सक्रिए रहने वाले वे एक विरल व्यक्तित्व थे। उन्होंने साहित्य-सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, कभी अलंकरण के पीछे नहीं भागे। अंततः अलंकरण को ही उनके पीछे आना पड़ा। साहित्य-सम्मेलन को उन पर सदा ही गौरव रहेगा। उन्होंने पाली और अपभ्रंश के साथ जैन साहित्य पर भी अत्यंत मूल्यवान कार्य किए, जो हिन्दी साहित्य की धरोहर है।

समारोह के उद्घाटन-कर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्मभूषण डा सी पी ठाकुर ने उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए कहा कि सूरिदेव जी बहुत बड़े तपस्वी साहित्यकार थे। उन्होंने जिस प्रकार हिन्दी के साथ पाली और अपभ्रंश भाषाओं की सेवा की, जैन-साहित्य को समृद्ध किया, वह प्रेरणा दायक है। हिन्दी साहित्य के विकास में आचार्य जी का बहुत बड़ा योगदान था। उनके कार्यकाल में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का भी बहुत उत्थान हुआ। हमें उनकी सेवाओं को सदा स्मरण रखना चाहिए।

अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि सूरिदेव जी का संपूर्ण व्यक्तित्व साहित्यिक था। उनकी विद्वता, विनम्रता और ओजपूर्ण वक्तृता मोहक थी। उनके जैसा साहित्यिक व्यक्तित्व विरल है। वरिष्ठ साहित्यकार मार्कण्डेय शारदेय, प्रो इन्द्र कांत झा, श्री सूरिदेव के पुत्र संगम कुमार रंजन, डा मेहता नगेंद्र सिंह, विमल नारायण मिश्र, निरुपमा मिश्र, सुनील नाथ मिश्र, विभा रंजन, ई आनन्द किशोर मिश्र और सुमन कुमार मिश्र ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा पुष्पा जमुआर, चितरंजन भारती, कुमार अनुपम, डा अर्चना त्रिपाठी, जय प्रकाश पुजारी, बाँके बिहारी साव, शंकर शरण आर्य, अर्जुन प्रसाद सिंह,रणजीत कुमार, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, अजित कुमार भारती आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं से काव्यांजलि दी। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापनकृष्ण रंजन सिंह ने किया।

इस अवसर पर रेखा त्रिपाठी, नवल किशोर सिंह, राज किशोर राय निरंजन, गीता गुप्त, डा चंद्रशेखर आज़ाद, विनय चन्द्र, दुःखदमन सिंह, नन्दन कुमार मीत, अमृत अनुभव, सुमन कुमार मिश्र, कुमारी डौली, सरोज कुमार पाठक आदि सुधीजन उपस्थित थे।