पटना : आधुनिक बिहार के सबसे गौरवशाली व्यक्तित्व थे डा सच्चिदानन्द सिन्हा। विद्वता, विनम्रता,दानशीलता और त्याग की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने बंगाल का विभाजन कराकर न केवल बिहार को अलग राज्य के रूप में स्थापित कराया बल्कि राज्य के सचिवालय और विधान-मंडल के निर्माण हेतु अपनी विशाल भूमि भी प्रदान की। वे हर प्रकार से बिहार के सर्वमान्य नेता थे। यह बिहार के लिए चिर-गौरव का विषय है कि इस प्रदेश ने भारत को प्रथम राष्ट्रपति भी दिया और संविधान सभा का अध्यक्ष भी। भारतीय संविधान पर, सभा के अध्यक्ष के रूप में उनका हस्ताक्षर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

यह बातें, रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि सच्चिदा बाबू की लोकप्रियता ऐसी थी कि उन्होंने चार-चार महाराजाओं को चुनाव में पराजित कर ‘केंद्रीय ऐसेंब्लि’ में अपनी जगह बनाई। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिहार के लोग उन्हें भूलते जा रहे हैं।

जयंती पर महान स्वतंत्रता-सेनानी और बिहार के पूर्व शिक्षामंत्री आचार्य बदरी नाथ वर्मा का स्मरण करते हुए कहा डा सुलभ ने कहा कि बदरी बाबू अपने समय के महान साहित्य-सेवी, पत्रकार, प्राध्यापक, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। वे शिक्षा और साहित्य ही नहीं राजनीति के भी आदर्श-पुरुष थे। उन पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और महान राजनीति शास्त्री आचार्य चाणक्य का गहरा प्रभाव था। उन्होंने चाणक्य के जीवन से यह सीखा था कि, निजी कार्य में, राज-कोश का एक बूँद तेल भी व्यय नही करना चाहिए। राज्य के शिक्षा विभाग समेत अन्य विभागों के मंत्री रहते हुए भी उन्होंने इसका अक्षरश: पालन किया। शासन का कुछ भी नही लिया। मीठापुर स्थित अपने अत्यंत साधारण खपरैल घर में रहे, किंतु सरकारी आवास तक नहीं लिया। उन्हीं के समान स्वावलंबी एवं स्वाभिमानी कवि थे प्रो सीताराम ‘दीन’। साहित्य सम्मेलन के साहित्य-मंत्री रहे विद्वान प्राध्यापक दीन जी पर कबीर का गहरा प्रभाव था। इसीलिए उनके आचरण में ही नहीं उनके साहित्य में भी ‘कबीरी’ दिखायी देती है।

समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्मभूषण डा सी पी ठाकुर ने कहा कि सच्चिदानन्द सिन्हा अपने समय के बहुत बड़े आदमी थे। बड़े ज्ञानी थे। राष्ट्र के लिए और विशेष रूप से बिहार के लिए की गयी उनकी सेवाओं को हम कभी भुला नहीं सकते।

पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे, राज्य उपभोक्ता आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि सच्चिदानन्द सिन्हा बिहार की एक ऐसी विभूति थे, जिन्होंने विधि की उपाधि इंग्लैंड से प्राप्त की थी। शिक्षा और विधि के क्षेत्र में उनका योगदान अतुल्य है। आज का बिहार उन्हीं की देन है। यह दुखद है कि हम अपनी ऐसी महान विभूति को भूलते जा रहे हैं।।

वैशाली ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष शशिभूषण कुमार, डा इन्दु पाण्डेय, कमल नयन श्रीवास्तव, निर्मला सिंह एवं संजय शुक्ल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपनी इन पंक्तियों से किया कि- “कैसे वे दिन भी थे सुहाने से/ आँख में सपने भी थे फसाने से ” । वरिष्ठ कवि डा एम के मधु का कहना था कि – “बीत रही बाती की दीप्त रही लौ/ बीत रहा शहर और बीत रहा साल”।

वरिष्ठ कवयित्री डा पुष्पा जमुआर, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा आर प्रवेश, जनार्दन सिंह, नीता सहाय, अर्जुन प्रसाद सिंह, नरेंद्र कुमार, डा पंकज प्रियम आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी मधुर काव्य-रचनाओं से समारोह को रसमय बनाया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन आनन्द मोहन झा ने किया।

डा महेंद्र प्रियदर्शी, मेदनी कुमार मेनन, डा चन्द्रशेखर आज़ाद, रंजन कुमार अमृतनिधि, नवल किशोर सिंह, नन्दन कुमार मीत, कुमारी मेनका, डौली कुमारी, अरविंद कुमार श्रीवास्तव, अनुज कुमार, अजय अग्रवाल, उपेंद्र कुमार आदि बड़ी संख्या में सुधीजन उपस्थित थे।