पटना : भारत के प्रथम हृदय-रोग-विशेषज्ञ डा श्रीनिवास एक महान चिकित्सक ही नहीं, एक महान साहित्यिक और आध्यात्मिक पुरुष भी थे। उनका व्यक्तित्व ऋषि-तुल्य संत का था। वे कला, साहित्य और संगीत के आग्रही तथा उनके पोषक-उन्नायक थे। वहीं बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे पं चंद्रशेखरधर मिश्र खड़ी-बोली की प्रथम पीढ़ी के महाकवि थे। इन्हें स्मरण करना तीर्थ के समान पावन है।यह बातें, शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही।
उन्होंने कहा कि डा श्रीनिवास भारत के पहले चिकित्सक थे, जो इंग्लैंड से ईसीजी मशीन लेकर भारत आए थे हृदय-रोग का उपचार आरंभ किया था। इसी मशीन से भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेंद्र प्रसाद और नेपाल के प्रधानमंत्री बी पी कोईराला समेत अनेक प्रभावशाली व्यक्तियों और सामान्य जन की भी चिकित्सा हुई। उन्होंने पटना में ‘इंदिरा गाँधी हृदय रोग संस्थान’की स्थापना की। वे एक मनीषी साहित्यकार और चिंतक थे। उन्होंने साहित्य और चिकित्सा साहित्य पर भी अनेक पुस्तकें लिखीं थी। चिकित्सा में वे सभी पद्धतियों के पक्षधर थे। उनका मानना था की रोगी की चिकित्सा होनी चाहिए, वो चाहे जिस पद्धति से हो। वो चिकित्सा की ‘पौली-पैथी’ के भी जनक माने जाते थे।
इस अवसर पर, युवा कवि मनोज कुमार सौमित्र के काव्य-संग्रह ‘वो मेरी पगली दीवानी थी’ का लोकार्पण भी किया गया। पुस्तक पर विचार रखते हुए, डा सुलभ ने कहा कि प्रेम, वेदना और विरह की नैसर्गिक अनुभूतियों का यह एक पठनीय संग्रह है, जिसमें कवि की आंतरिक भावनाएँ अभिव्यक्त हुई हैं। इस संग्रह में वर्तमान समाज की प्रवृत्तियाँ और विडंवनाएँ भी लक्षित होती हैं, जिससे यह प्रकट होता है कि कवि प्रेम और करुणा के साथ समाज की पीड़ा को भी समझता है। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, अमेरिका से पधारे डा श्रीनिवास के पुत्र डा ताण्डव आइंस्टाइन समदर्शी, डा कवीन्द्र प्रसाद सिन्हा, डा नागेंद्र प्रसाद लाल, डा विवेक कुमार, किरण समदर्शी,प्रो सुशील कुमार झा,अवध बिहारी सिंह आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कृतज्ञता-ज्ञापित करते हुए, लोकार्पित पुस्तक के कवि सौमित्र ने कहा कि आज के समय में, सच्चा प्रेम कोई पागल ही कर सकता है। इसलिए प्रेम करने वाले प्रत्येक पुरुष को ‘पगला’ और ऐसी प्रत्येक स्त्री को ‘पगली कहता हूँ। वह पत्नी या प्रेमिका भी हो सकती है, माँ और बेटी भी हो सकती है। उन्होंने अपनी लोकार्पित पुस्तक से चुनी हुई कविताओं का सस्वर पाठ भी किया।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवयित्री डा पूनम आनन्द, डा पुष्पा जमुआर, जय प्रकाश पुजारी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, राज आनन्द, डा प्रतिभा रानी, ई अशोक कुमार, डा कुंदन लोहानी, अर्जुन प्रसाद सिंह, कुमार राकेश ऋतुराज, युगेश कुशवाहा आदि कवियों और कवयित्रियों ने काव्य-पाठ से उत्सव को सरस और आनंदप्रद बना दिया।मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पांडेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया। समारोह में, प्रो राम ईश्वर प्रसाद,श्याम मनोहर मिश्र, यशवंत कुमार शर्मा, रेणु शर्मा, अर्चना सौमित्र, अशोक कुमार दूबे, अमीरनाथ शर्मा, प्रिया राज आदि उपस्थित थे।