पटना : संसार का हर व्यक्ति कष्ट में होता है। हर किसी को किसी न किसी प्रकार का कष्ट रहता ही है। वही कष्टों से मुक्त है, जिसने परमात्मा का चरण पकड़ लिया है। संसार का प्रत्येक जीव अपने करमों का प्रारब्ध भोगता है। इससे मुक्ति का मार्ग आंतरिक साधना है। आंतरिक साधना से धीरे-धीरे मनुष्य अपने मन को दृढ़ कारने में सफल होता है, जिससे कष्टों पर विजय पाना सरल होता जाता है। सारा खेल ‘मन’ का ही है।
यह बातें शुक्रवार को अंतर्राष्ट्रीय इस्सयोग समाज के तत्त्वावधान में, गोलारोड स्थित एम एस एम बी इस्सयोग भवन में आयोजित, इस्सयोग के संस्थापक और ब्रह्मलीन सदगुरुदेव के महानिर्वाण की स्मृति में प्रत्येक मास होने वाले स्मृति-पर्व में अपना आशिर्वचन देती हुईं, संस्था की अध्यक्ष एवं सदगुरुमाता माँ विजया जी ने कही। माताजी ने कहा कि आम आदमी केवल अपने शरीर के सुख को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लेता है। वह अपने आत्मिक-उत्थान के विषय में नहीं सोचता, जो वास्तव में उसके वास्तविक सुख और आनन्द का कारक हो सकता है। साधना के मार्ग से जुड़ने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे वह चेतना प्राप्त करने लगता है और उसका जीवन आनन्दमय और कल्याणकारी हो जाता है। अस्तु प्रत्येक साधक को नियमित रूप से प्रत्येक दिन कम से कम एक घंटे इस्सयोग की आंतरिक साधना अवश्य करनी चाहिए।
यह जानकारी देते हुए, संस्था के संयुक्त सचिव डा अनिल सुलभ ने बताया कि माताजी के आशिर्वचन के पूर्व सदगुरु के आह्वान की साधना के साथ आज का उत्सव आरंभ हुआ, जिसके पश्चात एक घंटे का अखंड-संकीर्तन सपन्न हुआ और इस्सयोगियों ने अपने श्रद्धा-उद्गार भी व्यक्त किए। इस अवसर पर प्रत्येक तीन महीने पर दिया जाने वाला महात्मा सुशील कुमार माँ विजया प्रोत्साहन-पुरस्कार, केरल की वैज्ञानिक इस्सयोगी डा रेणुका को यह पुरस्कार प्रदान किया गया। यह पुरस्कार उन्हें, ‘माइक्रोबायोलौजिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया’ द्वारा’बेस्ट साइंटिस्ट अवार्ड’ से विभूषित होने की उपलब्धि पर दिया गया है। इन्हें मणिपाल युनिवर्सिटी, जयपुर द्वारा ‘प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल’ प्रदान किया गया है।
संस्था के संयुक्त सचिव उमेश कुमार, संगीता झा, संदीप गुप्ता, सरोज गुटगुटिया, शिवम् झा, श्रीप्रकाश सिंह, लक्ष्मी प्रसाद साहू, नीना दूबे गुप्ता, बीरेन्द्र राय, गायत्री प्रदीप, माया साहू, राजेश वर्णवाल, गायत्री कृष्ण मोहन राय, ममता जमुआर, रविकान्त मूलचंद, किरण झा,कपिलेश्वर मण्डल, पीयूष कुमार, दुष्यंत यादव, तथा मंजू देवी समेत बड़ी संख्या में इस्सयोगी साधक-साधिकाओं की उपस्थिति रही। दिन के महा-प्रसाद के साथ स्मृति-पर्व का समापन हुआ।