पटना : जीवन को परिभाषित करने वाली अमर रचना ‘जीवन का झरना’ के महान कवि आरसी प्रसाद सिंह, प्रकृति, प्रेम, जीवन और यौवन के महाकवि थे। मैथिली और हिन्दी में समान अधिकार से लिखने वाले आरसी बाबू बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों,दिनकर, प्रभात, वियोगी, नेपाली और जानकी बल्लभ शास्त्री के साथ परिगणित होते हैं । वे भारत के उस शाश्वत जीवन-दर्शन का चित्रण प्रस्तुत करते हैं, जिसमें जीवन के प्रति एक रागात्मक वितराग है – “जीवन क्या है? निर्झर है/ मस्ती ही इसका पानी है/ सुख-दुःख के दोनों तीरों से / चल रहा राह मनमानी है”।
यह बातें सोमवार को साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और काव्य-संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, मैथिली में, जो उनकी मातृ-भाषा थी, प्रकाशित उनके तीन काव्य-संग्रह- ‘माटिक दीप’, ‘पूजाक फूल’ व ‘सूर्यमुखी’ तथा हिन्दी में प्रकाशित ‘काग़ज़ की नाव’ और ‘अनमोल वचन’ काव्य-सागर की अनमोल मोतियाँ हैं। ‘सूर्यमुखी’ के लिए उन्हें 1948 में, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

डा सुलभ ने जयंती पर आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी को स्मरण करते हुए कहा कि पिछली पीढ़ी के जिन मनीषियों को हिन्दी के उन्नायकों के रूप में स्मरण किया जाता है, उनमे श्रेष्ठतम स्थान पर द्विवेदी जी विराजमान है। संस्कृत, हिन्दी, बांगला और अंग्रेज़ी भाषाओं के अधिकारी विद्वान और ‘पद्मभूषण’ अलंकरण से विभूषित आचार्य द्विवेदी जी एक महान समालोचक, निबन्धकार और उपन्यासकार थे। वे स्वयं में एक साहित्यिक विश्वविद्यालय थे, जिनका सान्निध्य पाकर अनेक नवोदित साहित्यकार हिन्दी-व्योम के देदीप्यमान नक्षत्र बन गए ।

इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल की इन पंक्तियों से किया कि ” मेरा क़िस्सा कोई दुहरा रहा है/ कि अपना ग़म ग़ज़ल में गा रहा है/ सिले होंठों का कैसा बोल है ये/ जो मेरे दर्द को सहला रहा है” । वरिष्ठ कवयित्री डा मधु वर्मा ने स्त्री-विमर्श को स्वर देते हुए प्रश्न किया – “राम तुमने शिला से पुनः अहिल्या क्यों बना दिया? देव लोक से जब मेरे सतीत्व की रक्षा नहीं हो सकी। विक्षिप्त रही/ नारी पहचान न पायी आबध पाश को।”
वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर ने पावस की शोभा को शब्द दिए- “इतने द्वार खोलना क्या इतनी हल्की सी बात है? संभव क्या सब बूँदें गिनना अविरल जब बरसात है”! कवयित्री नीता सहाय ने सावन का आह्वान करते हुए आग्रह किया कि “सावन तुम आना फिर से/ धरा का प्यास बुझाने फिर से/ तुम रहते हो तो लगता है/ भरा-भरा है जीवन मेरा।”
वरिष्ठ कवि प्रो इन्द्रकांत झा, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, ई अशोक कुमार, शंकर शरण मधुकर, युगेश कुशवाहा, दिनेश्वर लाल दिव्यांशु,मयंक कुमार मानस आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन बाँके बिहारी साव ने किया।
इस अवसर पर, डा चंद्रशेखर आज़ाद, प्रेम अग्रवाल , नन्दन कुमार मीत, अमन वर्मा, मनुज यादव, राहूल कुमार, ज़फ़र अहसन, साहिल राज, श्री बाबू आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।