पटना : “आँखों में कट गया साल कि वो आएँगे नए साल में -”, “आँखों-आँखों में नए ख़्वाब दिए जाता हूँ”, “नयनों में हो तुम बसे, मेरी स्मृति में तुम”, आदि प्रेम, विरह और नववर्ष के मंगल-गान से आज कवियों ने नए वर्ष का स्वागत किया और विश्व में शांति, प्रेम और समृद्धि की कामना की। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष और पं सकल नारायण शर्मा और अंगिका के विश्रुत कवि डा नरेश पाण्डेय ‘चकोर’की जयंती पर, नए साल के स्वागत में, मंगलवार को कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया था। आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने नव वर्ष पर अपना पैग़ाम कुछ इस तरह दिया – “आँखों आँखों में नए ख़्वाब दिए जाता हूँ/ इस नए साल का पैग़ाम दिए जाता हूँ”। डा पुष्पा जमुआर का कहना था कि “हृदय तली का उद्गम है प्रेम/ प्रेम का स्रोत मन/ मन को नहीं करो इनकार/ कारने दो सबसे प्यार”। कवयित्री सागरिका राय ने कहा – “किरदार को निभाना तो है/ ज़िम्मेदारियों का बहाना तो है।”कवयित्री डा सरिता सिन्हा का कहना था – “नयनों में तुम हो बसे, मेरी स्मृति में भी तुम/ भाव में, अहसास में, करुणा वृति में तुम” । इंदु उपाध्याय ने कहा – “उनकी आदत रफ़्ता-रफ़्ता हो गई/ लगता है हमको मुहब्बत हो गई”।
वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर ने नसीहत देते हुए कहा कि “नूतनतम भी जो कुछ लगता, मूल न छोड़े अपना/ नई दिशा या नई प्रेरणा, नहीं अचानक घटना।”कवयित्री डा प्रतिभा रानी, सिद्धेश्वर, विधुशेखर पाण्डेय, डा सरिता सुहावनी, ई अशोक कुमार, जय प्रकाश पुजारी, अरुण कुमार श्रीवास्तव, अरविन्द अकेला, अर्जुन प्रसाद सिंह, आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी कविताओं के पाठ से आयोजन में मधुर रस घोले।अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने किसी की अंतहीन प्रतीक्षा को इन शब्दों में अभिव्यक्ति दी कि – “आँखों में कट गया साल कि वो आएँगे नए साल में/ ताज महल के परकोटे से मुस्काएँगे नए साल में/ वही बताएँ कब आएँगे कितनी सदियाँ बीत गयीं/ या फिर एक झलक दिखला कर बहलाएँगे नए साल में।”इसके पूर्व डा सुलभ ने सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष पं सकल नारायण शर्मा को स्मरण करते हुए कहा कि शर्मा जी हिन्दी और संस्कृत के उद्भट विद्वान थे।
साहित्य सम्मेलन से बहुत गहरे जुड़े रहे हिन्दी और अंगिका के स्मृति-शेष कवि डा नरेश पाण्डेय ‘चकोर’ को श्रद्धांजलि देते हुए डा सुलभ ने उन्हें ‘अंगिका का ऋषि-कवि’ बताया और कहा कि अंगिका के लिए चकोर जी ने अपना संपूर्ण जीवन न्योक्षावर कर दिया था। अंगिका में उनका प्राण बसता था। डेढ़ सौ से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तकों से उन्होंने ‘अंगिका’ का भंडार भरा। अपने जन्म-दिवस को ‘अंगिका-महोत्सव’ के रूप में मनाते थे। अंगिका में प्रकाशित पुस्तकों और पत्रिकाओं की प्रदर्शनी लगाया करते थे। उनके मन में जितना समर्पण अंगिका के लिए था, उससे कम हिन्दी के लिए नहीं था। वे अंगिका’ की उन्नति चाहते थे, पर ‘हिन्दी’ के मूल्य पर नहीं। चकोर जी के शिक्षक पुत्र विधु शेखर पाण्डेय, गायिका-पुत्री डा सरिता सुहावनी, पं विजय तिवारी, प्रवीर पंकज तथा अवध बिहारी सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानंद पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन बाँके बिहारी साव ने किया। डा चंद्रशेखर आज़ाद, विनय चंद्र, सुकेश कुमार पण्डित, मो फ़हीम, विजय कुमार दिवाकर, नन्दन कुमार मीत, भरत कुमार आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।