पटना : नीतीश सरकार को सोमवार को विधान सभा के कुंए (वेल) में विश्वास मत से गुजरना है। नीतीश कुमार की पहली सरकार 2000 में बनी थी। उस समय भी कुछ विधायकों के अभाव में सरकार ने परीक्षण से पहले ही घोषणा कर राज्यपाल को इस्तीफा सौंप आया था। इसके बाद नीतीश सरकार हर बार आसानी से बहुमत हासिल करती रही। कई बार घोलटनिया मारने के बाद भी बहुमत का कोई संकट नहीं आया था। पिछले 19-20 वर्षों में पहला अवसर है, जब नीतीश कुमार को सदन में बहुमत बनाये रखने के लिए विधायकों की घेरेबंदी करनी पड़ रही है। पार्टी टूट के संकट से गुजर रही है। घोलटनिया मारने के फेर में रीढ़ चटखने का खतरा बढ़ गया है। 2014 में राज्यसभा उपचुनाव के समय जदयू में टूट का संकट गहराया था, लेकिन राजद के सहयोग से संकट से उबर गये थे। लेकिन इस बार ‘मोदी की गारंटी’ के बाद भी नीतीश कुमार बहुमत को लेकर आश्वस्त नहीं हैं।
12 फरवरी को विधान सभा में सरकार का फ्लोर टेस्ट है। उसी दिन सरकार को एक ही दिन में दो बार टेस्ट देना है। पहले स्पीकर के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को सदन में पास करवाना है और इसके बाद सरकार को विश्वास मत हासिल करना है। इन दोनों प्रस्तावों को लेकर दोनों खेमों में किलेबंदी तेज हो गयी है। किला ढाहने और बचाने के लिए जोर आजमाईश जारी है। दोनों खेमों की ओर से विरोधी खेमे में सेंधमारी का दावा किया जा रहा है। इसके साथ ही किले के अटूट रखने का प्रयास भी जारी है।इस पूरी प्रकिया में एक शब्द है फ्लोर टेस्ट। विधान सभा की सदन के सबसे नीचे हिस्से को वेल कहा जाता है। वेल मतलब कुआं। विधायक अपना विरोध दर्ज कराने के लिए भी वेल में आकर हंगामा करते हैं। विधायक एक गरिमामय जिम्मेवारी है। इसलिए इनके नाम के साथ माननीय शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन संसद या विधान सभा में विधायकों या सांसदों के आचरण देखकर इनकी तुलना बेंग यानी मेढ़क से भी की जा सकती है।
सोमवार को कुएं में बेंग का खेला होने वाला है। घोड़ों के पैर में नाल ठोकने की कहानी आप लोग सुनते रहे होंगे। पहली बार राजनीतिक दलों की ओर से मेढ़कों के पैर में नाल ठोकने का दावा किया जा रहा है, ताकि विधान सभा में जोड़ की छलांग लगा सकें। सांसद और विधायकों की खरीद-बिक्री को हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता था। दल बदल कानून ने घोड़ों को गदहा बना दिया है। इसका बाजार पटना, गया से लेकर हैदराबाद में सजाया जा रहा है। नाद में माल के साथ मालपुआ तक परोसा जा रहा है। सोमवार को इन सभी को बेंग बनाकर कुंए (वेल) में धकेल दिया जाएगा। एक दिन में दो बार वोट देना है। पहले वोट से स्पीकर का भविष्य तय होगा और दूसरे वोट से सरकार की किस्मत तय होगी।सोमवार को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य का फैसला होना है। दोनों एक-दूसरे को उल्हा करने के प्रयास में हैं। इस लड़ाई में तेजस्वी यादव हारते हैं तो यह सामान्य राजनीतिक घटनाक्रम में माना जाएगा। यदि नीतीश कुमार हारते हैं तो उनके राजनीतिक कैरियर का पूर्ण विराम माना जाएगा। लेकिन इतना तय है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की लड़ाई में फायदा भाजपा को ही होने वाला है।