पटना : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर एक बार फिर राजनीति गर्म हो गई है I गृहमंत्री अमित शाह के ग्रीन सिगनल और लालू यादव के बढ़ती दूरी के चलते कयासों का बाजार एक बार फिर गर्म हो गया है I नीतीश बिहार की सियासत के वो सितारें हैं जो हर गठबंधन के लिए जरूरी या मजबूरी हैं I 8 बार सीएम पद का शपथ ग्रहण कर चुके नीतीश कुमार बिहार में पिछली 2 ऐसी सरकारों का वो नेतृत्व कर रहे हैं जिसमें उनकी पार्टी से अधिक विधायकों की संख्या सहयोगी पार्टी की रही है I पर बीजेपी हो या आरजेडी किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वो उन्हें हटाकर अपनी पार्टी के किसी नेता को सीएम बना दे I आखिर ऐसे कौन से कारण रहे हैं कि बिहार की राजनीति के लिए नीतीश कुमार जरूरी हो जाते हैं I आरजेडी ही नहीं उनके साथ रहना चाहती है, इंडिया गठबंधन के लोग भी चाहते हैं कि नीतीश कुमार गठबंधन के संयोजक बन जाएं I वैसे भी नीतीश कुमार की ही शख्सियत थी कि विपक्ष को एक मंच पर लाने में सफल हुए थे I पर अचानक ऐसा क्या हो गया है कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए गठबंधन में जाना उनके लिए मजबूरी हो गया है I
बिहार की राजनीति में नीतीश क्यों जरूरी हैं
आइये सबसे पहले ये जानते हैं कि आखिर वो कौन से कारण हैं कि जेडीयू के विधायकों की संख्या कम होने के बावजूद चाहे बीजेपी रही हो या आरजेडी कोई भी नीतीश कुमार को पीछे करके अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री बनाने का साहस नहीं कर पाया I दरअसल बिहार में लालू राज के जंगल राज के बाद नीतीश कुमार बिहार में सुशासन बाबू और विकास पुरुष के रूप में प्रतिष्ठित हो गए I जिस बिहार की पहचान अपराध, नरसंहार, फिरौती उद्योग, उद्योग धंधों का पलायन, टूटी सड़कें बन चुकी थीं उसे काफी हद तक सामान्य करने में नीतीश कुमार सफल हुए थे I उनके नेतृत्व में एक ऐसा भी दौर आया जब बिहार की ग्रोथ रेट पूरे देश में सर्वाधिक हो गयी थी I दूसरे बिहार मे अपने तमाम प्रतिद्वंद्वियों के सामने नीतीश कुमार ने अपनी ईमानदार छवि बरकरार रखी हुई है I चुनाव में दाखिल हलफनामे बताते हैं कि आज भी उनके पास संपत्ति के नाम पर ज्यादे कुछ नहीं है I जबकि उनके सामने तेजस्वी यादव बहुत कम उम्र में ही करोड़ों के मालिक बन चुके हैं I उन्होंने अपने परिवार के लोगों को राजनीति से अलग रखकर एक मिसाल कायम किया है I
नीतीश समझ गए हैं कि पीएम पद अभी दूर की कौड़ी है
नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं I वो देश की राजनीति का भविष्य देख रहे हैं I उन्हें पता है कि इंडिया गठबंधन का भविष्य क्या होने वाला है I राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने दूरी बना ली है I मायावती ने भी इंडिया गठबंधन में आने से इनकार कर दिया है I इतनी दूरी के बाद अगर बाद में दिल जुड़ते भी हैं तो एनडीए को हराने का जज्बा नहीं पैदा होने वाला है I शायद यही सब देखकर उन्होंने इंडिया गठबंधन का संयोजक भी बनने से इनकार कर दिया I अगर इंडिया गठबंधन के सत्ता में आने की उम्मीद होती तो संयोजक बनना भी खराब सौदा नहीं था I
लालू के षडयंत्रों से त्रस्त हो गए नीतीश कुमार
जेडीयू के कुछ दिनों पहले तक अध्यक्ष रहे ललन सिंह बहुत पुराने साथी रहे हैं नीतीश कुमार के, पर लालू यादव के चलते उनसे नीतीश कुमार की दूरी हो गई I कहा गया कि ललन सिंह के साथ मिलकर लालू यादव जेडीयू के विधायकों को तोड़ना चाहते थे I पार्टी तोड़ने की कोशिश की खबर के बाद आरजेडी और जेडूयू के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं I समान्य शिष्टाचार वाली बातचीत भी आजकल नीतीश कुमार और लालू की फैमिली के साथ नहीं हो रही है I बिहार सरकार के कार्यक्रमों का श्रेय लेने की तेजस्वी की जल्दबाजी से भी नीतीश कुमार परेशान रहते हैं I टीचर्स भर्ती हो या अन्य सरकारी कार्यक्रम तेजस्वी हर मुद्दे पर सरकार की बजाय अपनी बात करते हैं I लालू यादव ने नीतीश कुमार को साथ तो लाया था कि उन्हें केंद्र में स्टैबलिश करेंगे पर जिस तरह इंडिया गठबंधन के संयोजक बनने में नीतीश कुमार के लिए टांग अड़ाई उसे नीतीश कुमार अच्छी तरह समझ गए I फिर जब ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खरगे को पीएम पद के लिए प्रस्तावित किया तो भी लालू यादव ने उसका विरोध न करके उसको मौन स्वीकृति दे दी थी I दरअसल लालू ये तो चाहते हैं कि उनके पुत्र तेजस्वी यादव बिहार के सीएम बन जाएं पर वो ये कभी नहीं चाहेंगे कि नीतीश कुमार देश के पीएम बन जाएं I
चुनावी माहौल को भांप लिए हैं नीतीश कुमार
राम मंदिर उद्घाटन को देशभर में जो माहौल बना है और ठीक उसके उलट राहुल गांधी की न्याय यात्रा को कोई तवज्जो न मिलते देख कोई भी ये अनुमान लगा सकता है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में क्या होने वाला है I बिहार में आरजेडी के कोर वोटर्स भी उनके साथ नहीं दिख रहे हैं I अभी हाल ही में आरजेडी के प्रदेश स्तर के 2 मुस्लिम नेताओं ने प्रशांत किशोर की जनसुराज का दामन थाम लिया I जाहिर है कि ऐसा यूं ही नहीं हुआ है I जब पार्टी की लोकप्रियता घट रही होती है तो ही नेता और कार्यकर्ता किसी छोटी पार्टी में जाने का फैसला लेते हैं I बिहार की राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस बार लालू यादव की पार्टी आरजेडी को यादवों का भी पूरा सपोर्ट नहीं मिलने वाला है I बीजेपी में लगातार यादव नेताओं के बढ़ते वर्चस्व से यादव समुदाय धीरे-धीरे आरजेडी से दूरी बना रहा है I मध्यप्रदेश का सीएम मोहन यादव के बनने के बाद कम से कम यादव समाज बीजेपी को अब अपना विरोधी नहीं मानता है I रामकृपाल यादव, हुकुमदेव नारायण यादव, नंदकिशोर यादव और नित्यानंद राय को बीजेपी में मिले महत्व से यादव समाज अब टूट रहा है I