देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को बुधवार को उसका नया अध्यक्ष मिल गया। मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं। खड़गे को 7897 वोट मिले। वहीं शशि थरूर को 1072 वोट मिले, जबकि 416 वोट रद्द हो गए। कुल 9385 नेताओं ने 17 अक्तूबर को वोट डाला था। थरूर ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। उन्होंने ट्वीट करके खरगे को जीत की बधाई दी। इसके साथ ही उन्होंने इसे पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र की जीत बताया।
शशि थरूर ने उठाए सवाल
चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाने वाला पत्र लीक होने को शशि थरूर ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सीईए को लिखा एक आंतरिक पत्र मीडिया में लीक कर दिया गया। मुझे उम्मीद है कि सलमान सोज के स्पष्टीकरण से अनावश्यक विवाद खत्म हो जाएगा। यह चुनाव कांग्रेस को मजबूत करने के लिए है न कि बांटने के लिए, चलो आगे बढ़ते हैं।
गैर-गांधी होगा कांग्रेस अध्यक्ष
कांग्रेस पार्टी के 137 साल के इतिहास में छठी बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश के मुताबिक, अध्यक्ष पद के लिए अब तक 1939, 1950, 1977, 1997 और 2000 में चुनाव हुए हैं।
खरगे के अध्यक्ष बनने से पार्टी में क्या बदलाव होगा?
कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। एक समय जिस पार्टी की पूरे देश में सरकार हुआ करती थी, आज वो दो राज्यों तक सिमटकर रह गई है। उनमें भी स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं है। ऐसे वक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना, पार्टी के लिए बड़ी बात है। हालांकि, इसके कुछ बिंदुओं पर नजर डालें तो ये बदलाव से ज्यादा विवाद की तरफ बढ़ता दिख रहा है।
1. पार्टी में पड़ सकती है फूट : पार्टी में कई नेता बदलाव चाहते हैं। खरगे के ऊपर कांग्रेस हाईकमान का हाथ बताया जा रहा है, जबकि थरूर अकेले पड़ गए हैं। ऐसे में पार्टी के अंदर बदलाव चाहने वाले नेता चुनाव बाद बगावती रुख अख्तियार कर सकते हैं। थरूर को युवा कांग्रेसी ज्यादा पसंद करते हैं। केरल व दक्षिण के अन्य राज्यों में भी उनकी अच्छा दखल है। पार्टी में फूट का कांग्रेस को इन राज्यों में नुकसान हो सकता है। मतगणना के दौरान भी यह दिखाई दिया। जब थरूर गुट की ओर से सैफुद्दीन सोज ने धांधली का आरोप लगाया। सोज ने उत्तर प्रदेश से पड़े सभी वोटों को अवैध करार देने की मांग की। वहीं, खरगे की जीत के बाद उत्तर प्रदेश से आने वाले राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि हारने वाले हार का बहाना बनाते हैं।
2. गांधी परिवार को ही खरगे से ज्यादा मिलेगा महत्व : 2004 से 2014 तक कांग्रेस सत्ता में रही है। तब भी यही देखने को मिला है। भले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे, लेकिन हर बड़ा फैसला गांधी परिवार की मंजूरी से ही होता था। एक बार तो मनमोहन सरकार की तरफ से पास किए गए अध्यादेश को राहुल गांधी ने भरी संसद में फाड़ दिया था। मतलब साफ है, भले ही अध्यक्ष पद पर मल्लिकार्जुन खरगे बैठैं, लेकिन सारे बड़े फैसले गांधी परिवार की मंजूरी से ही होंगे। अगर ऐसा होता है, तो आने वाले समय में कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। इसके उलट शशि थरूर बेबाकी से अपनी बात रखते हैं। उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए अपना विजन भी बताया है। वह गांधी परिवार से हटकर भी फैसले ले सकते हैं। अगर थरूर अध्यक्ष बनते तो जरूर पार्टी में कुछ बड़े बदलाव देखे जा सकते थे।
3. एजेंडा साफ नहीं: कहा जाता है कि खरगे वही करते थे, जो उन्हें कहा जाता था। अभी अध्यक्ष पद के लिए भी उनका नामांकन बहुत जल्दबाजी में हुआ। पहले गांधी परिवार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद के लिए आगे कर रही थी, लेकिन राजस्थान में सियासी ड्रामे के बाद खरगे का नाम लाना पड़ा। अध्यक्ष पद को लेकर खरगे का एजेंडा भी साफ नहीं है। पार्टी में कोई खास बदलाव हो, इसकी संभावना बहुत कम है।