पटना : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा ‘राष्ट्र-कवि’ की उपाधि से विभूषित और भारत सरकार के ‘पद्म-भूषण’ सम्मान से अलंकृत स्तुत्य कवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी के उन महान कवियों में से थे जो नव विकसित खड़ी बोली का नाम ‘हिन्दी’ के स्थान पर ‘भारती’ रखने के पक्षधर थे। उनका मानना था कि, क्योंकि यह ‘भारत’ की भाषा है इसलिए इसका नाम ‘भारती’ ही होना चाहिए। किंतु अन्य भारतीय नेताओं और विद्वानों की राय मानते हुए, इसे ‘हिन्दी’ ही कहा गया। नाम जो भी स्वीकृति हुआ हो, किंतु गुप्त जी जीवन-पर्यन्त भारत और भारती के गीत गाते रहे और यह प्रार्थना करते रहे कि “मानस-भवन में आर्य जन जिसकी उतारें आरती/ भगवान ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती”। वे खड़ी बोली (आधुनिक हिन्दी ) के उन्नायकों में मूर्द्धन्य और ‘साकेत’ खंड-काव्य के रूप में रामकथा लिखने वाले हिन्दी के प्रथम कवि हैं। उनकी काव्य-धारा में राष्ट्रीय भाव का प्रवाह है। ‘साकेत’, ‘यशोधरा’ , ‘जयद्रथ वध’ तथा ‘भारत-भारती’ जैसी दर्जन भर अमर-कृतियाँ हैं जो उनके महान काव्य-प्रतिभा का परिचय देती हैं।
यह बातें गुरुवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में महकवि की जयंती पर आयोजित पुस्तक -लोकार्पण-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही।
डा सुलभ ने कहा कि गुप्त जी ने अपना संपूर्ण जीवन भारत की स्वतंत्रता के लिए अविराम संघर्ष और ‘भारती’ की साधना में समर्पित कर दिया। स्वतंत्रता के पश्चात उन्हें राज्य-सभा के एक विद्वान सदस्य के रूप में भी भारत सरकार ने उनकी मेधा और सेवा को प्रतिष्ठा दी। वे अपने भौतिक देह को त्यागने के पूर्व तक सदन के आदरणीय सदस्य बने रहे। उनके पात्र जीवंत और लोक-कल्याणकारी हैं, जिनसे आज भी हज़ारों-हज़ार भारतवासी प्रेरणा पाते हैं! उनकी पंक्तियाँ – “राम! तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है/ कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।”भारतीय समाज को आज भी अनुप्राणित करती हैं। उन्हें स्मरण करना तीर्थाटन के समान पुण्य-फल दायी है।
इस अवसर पर युवा कवि अरविंद अकेला के संपादन में प्रकाशित साझा काव्य-संग्रह ‘प्रेम मंजरी’ का भी लोकार्पण किया गया। संग्रह में श्री अकेला के साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी और कवि विजय प्रकाश समेत 24 कवियों एवं कवयित्रियों की काव्य-रचानाएँ संकलित हैं। पुस्तक के प्रकाशक विद्या प्रकाशन, बाजपुर, उत्तराखण्ड की ओर से कवि विजय प्रकाश, जनार्दन मिश्र ‘जलज’,कवयित्री डा मीना कुमारी परिहार तथा सविता राज को ‘साहित्य गौरव सम्मान’ से विभूषित किया गया।
अपने उद्गार में विजय प्रकाश ने कहा कि पाठ्य-पुस्तकों से बड़े कवियों की रचनाएँ हटा दी गयी हैं, यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है। इससे विद्यार्थियों में कविता का संस्कार समाप्त हो रहा है। विद्यार्थियों में मनुष्यता के विकास के लिए आवश्यक है कि उन्हें कविता पढ़ाई जाए। केवल अध्यापन ही नहीं, बल्कि उन्हें काव्य पाठन और लेखन के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डा राज कुमार नाहर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, मृदुला प्रकाश, ई आनंद किशोर मिश्र आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। इलाहाबाद से पधारी कवयित्री नेहा इलाहाबादी,वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, तलत परवीन, जय प्रकाश पुजारी, कुमार अनुपम, डा सुषमा कुमारी, ई अशोक कुमार, अर्जुन प्रसाद सिंह, सविता राज, डा प्रतिभा रानी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, अंकेश कुमार, अरुण कुमार श्रीवास्तव, कमल किशोर वर्मा ‘कमल’, हरेंद्र सिन्हा, अनिल कुमार, सदानंद प्रसाद, योगेश कुशवाहा, दिवाकर कुमार, आदि कवियों एवं कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं की तालियाँ बटोरी। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। सम्मेलन के भावन अभिरक्षक डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा प्रेम प्रकाश, डा राकेश दत्त मिश्र, रवि कुमार, ज्योति कुमारी, मो फ़हीम, विनोद बिहारी शर्मा, नागेंद्र प्रसाद रोई, देवेंद्र झा, दुःख दमन सिंह, शशि शेखर समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।