पटना : हिन्दी के कथा-साहित्य में मुंशी प्रेमचंद्र को ‘उपन्यास-सम्राट’ या ‘कथा-सम्राट’ की उपाधि से विभूषित किया जाता है। किंतु हिन्दी के जिस कथाकार को ‘शैली-सम्राट’ कहा जाता है, वे हैं बिहार के महान कथा-शिल्पी राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह। कथा-लेखन में अपनी अत्यंत लुभावनी शैली के कारण,वे पाठकों के हृदय सिंहासान पर विराजमान रहे। उनकी झरना-सी मचलती हुई बहती, शोख़ और चुलबुली भाषा ने पाठकों को दीवाना बना दिया था। उनोंनें अपनी कहानियों में समय का सत्य, मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक सरोकारों को सर्वोच्च स्थान दिया।
यह बातें मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में राजाजी की जयंती के अवसर आयोजित समारोह और लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि राजा जी की कहानियाँ अपनी नज़ाकत भरी भाषा और रोचक चित्रण के कारण, पाठकों को मोहित करती हैं। कहानी किस प्रकार पाठकों को आरंभ से अंत तक पढ़ने के लिए विवश कर सकती है, इस शिल्प को वो जान गए थे। इसीलिए वे अपने समय के सबसे लोकप्रिय कहानीकार सिद्ध हुए।
डा सुलभ ने कहा कि, राजा जी हिंदू-मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सौहार्द के पक्षधर थे। अपने विपुल साहित्य में भी उन्होंने इसका ठोस परिचय दिया। उनकी कहानियों में उर्दू के भी पर्याप्त शब्द मिलते हैं। उनकी अत्यंत लोकप्रिय रही रचनाओं ‘राम-रहीम’ ‘माया मिली न राम’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘गांधी टोपी’, ‘नारी क्या एक पहेली’, ‘वे और हम’, ‘तब और अब’, ‘बिखरे मोती’ आदि में इसकी ख़ूबसूरत छटा देखी जा सकती है।
बिहार के पूर्व गृह सचिव और वरिष्ठ कथाकार जियालाल आर्य ने कहा कि राजाजी एक बड़े कथाकार होने के साथ एक अच्छे नाटककार भी थे। उन्होंने गद्य-साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में सार्थक लेखनी से हिन्दी को समृद्ध किया।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के डा शंकर प्रसाद ने कहा कि राजा जी यद्यपि राजघराने से किंतु उनके साहित्य में ग़रीबों की पीड़ा और समाज की वेदना सबसे प्रखरता के साथ मुखर हुई। उनकी कृतियाँ ‘कानों में कंगना’, ‘दरिद्र नारायण’ और ‘राम रहीम’ की बारंबार चर्चा होती है।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा गोष्ठी में, डा शंकर प्रसाद ने ‘–‘, डा मधु वर्मा ने ‘जन्मोत्सव का उपहार’, सागरिका राय ने ‘संतुलन’, डा पूनम आनन्द ने ‘मांग’, डा पुष्पा जमुआर ने ‘राष्ट्र-वंदन’, ई अशोक कुमार ने ‘बेचैनी’, मीरा श्रीवास्तव ने ‘बोहनी’, डा सीमा रानी ने ‘तोड़ती लक्ष्मण रेखा’, अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘साहित्य का ज्ञान’, अजीत भारती ने ‘जो सड़ गए’, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता ने ‘मानसिकता’ तथा मयंक मानस ने ‘रात्रि-जागरण’ शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डा शालिनी पाण्डेय ने किया।
वरिष्ठ कवयित्री आराधना प्रसाद, चंदा मिश्र, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, गायिका रेखा झा, उत्तरा सिंह, राकेश रंजन सिंह, प्रो राम ईश्वर पंडित, प्रमोद आर्य, अल्पना कुमारी, महफ़ूज़ आलम, विकाश कुमार, राम प्रसाद ठाकुर, नन्दन कुमार मीत समेत अनेक साहित्य सेवी एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।