पटना : अनेक अलक्षित साहित्यकारों को प्रकाश में लाने वाले स्तुत्य लेखक डा सुरेंद्र प्रसाद जमुआर तथा सुख्यात शल्य-चिकित्सक डा जितेंद्र सहाय, हिन्दी की अमूल्य सेवा करने वाले प्रणम्य साहित्यकार थे। परिश्रम और साहित्यिक प्रतिभा दोनों के ही आभूषण थे। जमुआर जी ने अपनी लेखनी से हिन्दी साहित्य को ही नही, बिहार के साहित्यकारों का भी बड़ा उपकार किया। उन्होंने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ तो नही लिखा, किंतु बिहार के साहित्यकारों का इतिहास अवश्य लिख डाला। वहीं दूसरी ओर, विदुषी कवयित्री पद्मश्री डा शांति जैन और संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पं आद्या चरण झा संस्कृत और हिन्दी की सेवाओं के लिए सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे।
यह बातें मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि आधुनिक हिन्दी साहित्य के उन्नयन में बिहार के साहित्यकारों ने अभूतपूर्व योगदान दिया है, किंतु ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास’ में बिहार के हिन्दी-सेवियों की चर्चा अत्यंत गौण है। जमुआर जी ने अपने चार अत्यंत मूल्यवान ग्रंथों, तीन खण्डों में प्रकाशित ‘बिहार के दिवंगत हिन्दी साहित्यकार’ एवं बिहार के साहित्यकारों की साहित्य यात्रा’ में, बिहार के साढ़े तीन सौ से अधिक हिन्दी-सेवियों के अवदानों को, प्रकाश में लाने का अत्यंत महनीय कार्य किया। इन ग्रंथों में इनकी विद्वता, अन्वेषण-धर्मिता, अकुंठ परिश्रम,साहित्य के प्रति अमूल्य निष्ठा और लेखन-सामर्थ्य का सुस्पष्ट परिचय मिलता है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि डा जितेंद्र सहाय एक लोकप्रिय शल्य-चिकित्सक होने के साथ ही, लोकप्रिय रचनाकार भी थे। उन्होंने जिस कौशल से शल्य-चिकित्सा के औज़ार चलाए उसी कौशल से लेखनी भी चलाई। वे साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष एवं एक प्रभावशाली नाटककार भी थे। उनके नाटकों, ‘निन्यानबे का फेर’, ‘मुण्डन’ , ‘बग़ल का किरायदार’, ‘महाभाव’ आदि के अनेक मंचन पटना एवं अन्य नगरों के प्रेक्षागृहों में होते रहे।
डा सहाय के पुत्र और पटना उच्च न्यायालय में अधिवक्ता अमित प्रकाश ने कहा कि, उनके पिता जितनी निष्ठा और प्रेम साहित्य से रखते थे, उतना ही साहित्य-सेवियों से भी। नगर के सभी साहित्यकारों के वे निजी चिकित्सक थे। किसी भी साहित्यकार को किसी भी प्रकार रोग हो, उनकी सेवा निःशुल्क उपलब्ध होती थी।
दूरदर्शन बिहार के पूर्व कार्यक्रम-प्रमुख तथा डा जमुआर के साहित्यकार पुत्र डा ओम् प्रकाश जमुआर ने कहा कि मुझे यह सौभाग्य रहा कि अपने पिता के लेखन कार्य में मैं सहायक हो सका। जब वे ‘बिहार के दिवंगत साहित्यकार’ का तीसरा खंड लिख रहे थे, उन्हें लिखने में कठिनाई हो रही थी। मेरे बहुत अनुरोध पर वे माने। वे बोला करते थे और मैं लिखा करता था। उनकी तपस्या में एक छोटी भूमिका मेरी भी रही।
वरिष्ठ कवि और भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर ने संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और महान संस्कृत-सेवी पं आद्याचरण झा के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, संपूर्ण भारत वर्ष में संस्कृत के लिए जो कार्य उन्होंने किया, वह अद्वितीय है। भारत के राष्ट्रपति डा शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें राष्ट्रपति सम्मान से अलंकृत किया और उन्हें संस्कृत के लिए राष्ट्रपति-सम्मान के लिए चयन हेतु गठित समिति का सदस्य भी बनाया था।
डा शांति जैन की अनुजा शारदा जैन ने उनकी काव्य-साधना पर विस्तार पूर्वक चर्चा की तथा उन्हें गीति-धारा की स्तुत्य कवयित्री बताया। बहन शांति जी बाल्य-काल से ही शांत स्वभाव की थीं। बहुत पढ़ना और बहुत कुछ करना चाहती थीं। उन्होंने साहित्य के लिए अपना संपूर्ण जीवन अर्पित कर दिया। विवाह भी नहीं किया। उनका बिहार-गीत ‘ये है मेरा बिहार’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस गीत ने उन्हें अप्रतिम लोकप्रियता प्रदान की। उनके निकटतम परिजन कल्पना जैन, डा मेहता नगेंद्र सिंह, बाँके बिहारी साव, डा शालिनी पाण्डेय आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना हुआ। वरिष्ठ शायर आरपी घायल, डा विद्या चौधरी, शुभ चंद्र सिन्हा, डा सुधा सिन्हा, मधु रानी लाल, श्याम बिहारी प्रभाकर, कुमार अनुपम, कमल किशोर ‘कमल’, जय प्रकाश पुजारी, ई अशोक कुमार, अरविंद अकेला, अर्जुन प्रसाद सिंह आदि कवियों ने अपनी काव्य-रचनाओं से श्रोताओं का हृदय जीत लिया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। डा राकेश दत्त मिश्र, निर्मला जैन, नारायण सिंह, सुनील कुमार, डा चंद्रशेखर आज़ाद, सुगौरव प्रकाश आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।