पटना :  कथा-साहित्य मानव-जीवन को आदिकाल से प्रभावित करता रहा है। मानव का शैशव दादी-नानी की गोद में कथा-कहानी सुनते हुए व्यतीत होता है। ये कहानियाँ मानव-जीवन को सदियों से संस्कारित करती आयी हैं। इस लिए कथाओं में कौतूहल और रोमांच के साथ जीवन के संदेश भी आवश्यक हैं। लेखक को शिल्प, भाषा और कथ्य के साथ इनका भी ध्यान रखना चाहिए। बल्कि एक लेखक ही नहीं, प्रत्येक पत्रकार और वक्ता-व्याख्याता को भी अवश्य ही ‘शब्द-साधना’ करनी चाहिए।

यह बातें शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में विगत 1 सितम्बर से आयोजित हिन्दी पखवारा-सह-पुस्तक चौदस मेला’ के छठे दिन आयोजित हुई ‘कथा-कार्यशाला’ की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि ‘शब्द-साधना’ से तात्पर्य यह है कि वह, प्रयोग में आने वाले प्रत्येक शब्द का, उसके लिंग सहित अर्थ जाने और अपना शब्द-सामर्थ्य बढ़ाए। एक कुशल लेखक की उच्च प्राथमिकता उसकी भाषा ही होती है। तभी घनीभूत भाव को अर्थ मिलते हैं। कथा में रोचकता और उद्देश्य की गम्भीरता आवश्यक है। कहानी का एक उद्देश्य पाठकों के मन का रंजन तो है, पर यही एक मात्र उद्देश्य नहीं, अपितु जिससे लोक-मंगल हो, समाज में गुणात्मक परिवर्तन हो, पाठकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़े, यह है। अस्तु एक कवि-कथाकर को समाज के हित को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखकर रचना करनी चाहिए।

कार्यशाला में एक आचार्य की भूमिका में उपस्थित वरिष्ठ उपन्यासकार एवं पत्रकार विकास कुमार झा ने कथा-सृजन के विभिन्न आयामों पर विस्तार से चर्चा करते हुए, शिल्प, शैली, कथानक, कथोपकथन, भाषा, कथारंभ से लेकर उसके विकास, पात्रों के चरित्र-चित्रण, उत्कर्ष और अंत तक की लेखन-विधि से प्रतिभागियों को परिचित कराया। उन्होंने कहा कि लेखन समर्पण खोजता है और एक समर्पित लेखक को दैवीशक्तियाँ भी मार्ग-दर्शन करती हैं।

वरिष्ठ कथाकार डा संतोष दीक्षित ने कथा के कला-पक्ष पर अपनी बात रखते हुए कहा कि कहानी लिखना एक कला है। आप अपनी कल्पना-शक्ति से किसी गल्प को कैसे सच्ची कहानी की तरह पाठकों तक पहुँचा देते हैं, यही आपकी कला है। कहानी जीवन से परे नहीं होती। यह जीवन से जुड़ी होती है।

सम्मेलन के साहित्य मंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि घटित घटनाओं तथा कल्पित घटनाओं पर आधरित किसी की इतिवृत को कथा कहा जाता है। उपन्यास, उपन्यासिका (लघु उपन्यास), लम्बी कहानी, कहानी, लघु-कथा, आत्म-कथा, जीवनी, पटकथा, मिथक, विज्ञान-कथा,परी कथाएँ, किंवदंतियाँ, यात्रा-वृतांत और इतिहास भी कथा-साहित्य है। कथा की शैली वर्णनात्मक, आत्म-कथात्मक अथवा संवादात्मक हो सकती है। लेखकों को इसके आरंभ, आरोह और चरमोत्कर्ष पर विशेष बल देना चाहिए।

सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा शशि भूषण सिंह, चित्त रंजन भारती, उत्पल कुमार, डा विभा रानी श्रीवास्तव,डा पूनम आनन्द, डा विद्या चौधरी, ई अशोक कुमार, निर्मला सिंह, अनुभा गुप्ता, इन्दु भूषण सहाय, प्रेमलता सिंह, गायत्री देवी, सारिका सुमन, प्रो दीप्ति त्रिपाठी, मीरा श्रीवास्तव, डा आर प्रवेश, पंकज प्रियम, डा कुंदन लोहानी, अमन राज, रवि रंजन, आनन्द मोहन झा, सत्यम दूबे’शार्दूल’, कृष्ण रंजन सिंह, आनन्द मोहन झा, माही कुमारी, कृष कुमार, फ़रहान अली, राघव राज, प्रबोधचंद्र त्रिपाठी, अनिमेष कुमार, ईशा कुमारी आदि साहित्यकारों ने प्रतिभागिता दी।