पटना : हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखने वाले विद्वान समालोचक डा कुमार विमल काव्य में सौंदर्य-शास्त्र के महान आचार्य और अपने समय के जीवित साहित्य-कोश थे। उनका संपूर्ण जीवन, साहित्य और पुस्तकों के साथ अहर्निश जुड़ा रहा। वे प्रायः ही पुस्तकों से घिरे और लिखते-पढ़ते देखे जाते थे। यह बातें गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही।

डा सुलभ ने कहा कि, बिहार में समालोचना के क्षेत्र में आचार्य नलिन विलोचन शर्मा के बाद डा कुमार विमल का नाम सर्वाधिक आदर से लिया जाता है। सौंदर्य-शास्त्र पर लिखा उनका शोध-ग्रंथ, हिन्दी साहित्य का धरोहर है। वे एक महान साहित्य-मनीषी थे।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, कुमार विमल का निजी पुस्तकालय अत्यंत समृद्ध था। ‘अज्ञेय’ भी उनके आवास पर आते थे और पुस्तकें पढ़ते थे। सुमित्रानन्दन पंत उनके आत्मीय प्रशंसक थे। वे बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। उनकी ख्याति साहित्य संसार में एक सौंदर्य-शास्त्री के रूप में हुई।

सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, प्रो सुशील कुमार झा, आनन्द बिहारी सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किया।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, कुमार अनुपम, शंकर शरण मधुकर, डा विद्या चौधरी, जय प्रकाश पुजारी, डा आर प्रवेश, डा गीता सहाय, शिवानन्द गिरि, चंदन घोष आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।दूसरे खंड में डा पुष्पा जमुआर ने ‘हिन्दी का रोना’, डा पूनम आनन्द ने ‘पितृ-पक्ष’, विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘चक्रव्यूह’ तथा अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘परिणाम’ शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।डा पुरुषोत्तम कुमार, दुःख दमन सिंह, तनुजा देवी, प्रो राम ईश्वर पण्डित, नन्दन कुमार मीत आदि प्रबुद्धजन उपशित थे।