पटना : अध्‍यक्ष के रूप में नंदकिशोर यादव के समक्ष सबसे बड़ी जबावदेही आरजेडी के तीन बागी विधायकों की खिलाफ कार्रवाई करने की है। 12 फरवरी को राजद के विधायक प्रह्लाद यादव, चेतन आनंद और नीलम देवी सत्‍ता पक्ष की ओर बैठ गये थे और सरकार के पक्ष में मतदान किया था। जब नंदकिशोर यादव अध्‍यक्ष के रूप में आसन ग्रहण कर रहे थे तब भी तीनों विधायक सत्‍ता पक्ष में बैठे हुए थे। तीनों बागी विधायक सत्‍ता पक्ष के हित में दलबदल कानून का उल्‍लंघन किया है। इसलिए अध्‍यक्ष इन बागी विधायकों को बर्खास्‍त करने की कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। वजह साफ है कि अध्‍यक्ष आखिरकार आसन पर पार्टी का प्रतिनिधि होता है और पार्टी हित उनके लिए महत्‍वपूर्ण होता है। इसलिए बीच का रास्‍ता निकाला जा रहा है।

एनडीए सूत्रों के अनुसार, बीजेपी तीनों बागी विधायकों से इस्‍तीफा दिलवाकर अपने कोटे से एमएलसी बनाएगी। इसका सबसे बड़ा लाभ होगा कि तीन विधायकों के इस्‍तीफे से आरजेडी दूसरे नंबर की पार्टी की बन जाएगी और बीजेपी सदन में सबसे बड़ी पार्टी हो जाएगी। इसका एक फायदा यह भी है कि कभी नीतीश ने फिर पाला बदला तो बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने का दावा कर सकती है। तब बीजेपी के राज्‍यपाल भाजपा को सरकार का बनाने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। और सरकार बनने के बाद बहुमत का खेला होते रहता है।

आरजेडी के अनुसार, पार्टी तीनों बागी के खिलाफ अपनी ओर से सदस्‍तया बर्खास्‍त करने का कोई क्‍लेम नहीं करेगा। उसे भी इसी बात का डर है कि तीन सदस्‍यों की सदस्‍यता खत्‍म हुई तो सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा समाप्‍त हो जाएगा। इसलिए आरजेडी आस्‍तीन के सांप की तरह बागी विधायकों को झेलता रहेगा। संभव है कि भाजपा खुद आगे बढ़कर आरजेडी के विधायकों को इस्‍तीफा दिलवाने की पहल करे और एक नये राजनीतिक समझौते से सदन में अपनी ताकत बढ़ाने की राह निकाल ले।