पटना : नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन मे हार-जीत का दौर चलता रहा है. कई बार जब लोग उन्हें चूका हुआ मान लेते हैं तो वो फिर से उठकर खड़े हो जाते हैं. 1974 में JP आंदोलन से राजनीति में एंट्री करने वाले नीतीश 1985 में पहली बार विधायक बन पाए थे. इससे पहले उन्हें लगातार हार का सामना करना पड़ा था. 1991 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव हारने के बाद नीतीश की राजनीति पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए थे, लेकिन 1995 आते-आते समता पार्टी बनाकर नीतीश कुमार फिर खड़े हो गए.
2004 की लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री रहते हुए नीतीश बाढ़ लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे, साथ ही NDA की भी बिहार में करारी हार हुई थी. लगभग 1 साल बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में अच्छी खासी सीट जीत कर उन्होंने वापसी कर ली. 2014 के लोकसभा चुनाव में महज 2 सीट पर सिमटने के बाद नीतीश युग के खत्म की बात हुई. लेकिन 1 साल बाद ही नीतीश कुमार ने बाजी पलट दी, एक बार फिर 4 सीट कम जीतने के बावजूद नीतीश कुमार ने 5 साल की राजनीति जीत ली है.
अलोकप्रिय होते नीतीश को ही नेता मानना BJP की मजबूरी नीतीश कुमार की लोकप्रियता बतौर मुख्यमंत्री बिहार में तेजी से कम हुई है, लेकिन परिस्थितियों के अनुसार उन्हें ही नेता मानना BJP के लिए मजबूरी है. क्योंकि इस चुनाव ने नीतीश के केंद्र की चाभी दे दी है. राजद के पास नीतीश कुमार की वापसी की कम संभावना है लेकिन अगर वो जाते हैं तो वहां भी नीतीश कुमार को ही नेता मानने की मजबूरी राजद के पास भी होगी. किसी दूसरे विकल्प पर तब ही समझौता हो सकता है जब वो विकल्प नीतीश कुमार के लिए PM का पद हो, जो विपक्षी गठबंधन की तरफ से मुश्किल दिखता है.
4 सीट हारकर भी 5 साल की राजनीति जीत गए नीतीश कुमार
राजनीति परिस्थितियों का गुलाम होता है, कब आपका सस्ता शेयर भी बड़ा मुनाफा देकर जाए इसकी भनक पोलिटिकल पंडितों को भी नहीं होती है. लोकसभा चुनाव के मतदान तक जिस नीतीश कुमार को लोग चूका हुआ मान रहे थे उन्होंने बाजी पलट दी है. राजनीतिक हालात ऐसे बने हैं कि नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर अगले 5 साल के लिए प्रासंगिक हो गए हैं. 2 महीने पहले तक इस बात की चर्चा हर तरफ थी कि लोकसभा चुनाव के बाद क्या BJP नीतीश कुमार को कंटिन्यू करेगी? वर्तमान राजनीतिक समीकरण ने जवाब दे दिया है.