देश की जिस संसद ने 60 साल की उम्र तक काम करने के बाद कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन खत्म करने का प्रावधान किया था, उसी संसद का कोई एक दिन के लिए भी सदस्य बन जाता है तो उसे आजीवन भारत सरकार की ओर से पेंशन दी जाती है. आइए जान लेते हैं कि पूर्व सांसदों की पेंशन को लेकर क्या नियम हैं? पूर्व सांसदों को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं और क्या विधायकों के साथ भी ऐसा ही होता है?
देश में 18वीं लोकसभा का गठन होने जा रहा है. इसके लिए चुनावी प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है और आदर्श आचार संहिता खत्म हो चुकी है. इस बार कई पुराने सांसद सदन पहुंचे हैं तो कई नए भी. कई ऐसे भी हैं, जो विधायक से सांसद बने हैं. अब ये लोकसभा में शपथ ग्रहण करने के साथ ही देश के लिए नियम-कानून बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा बन जाएंगे. पर क्या आप जानते हैं कि देश की जिस संसद ने 60 साल की उम्र तक काम करने के बाद कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन खत्म करने का प्रावधान किया था, उसी संसद का कोई एक दिन के लिए भी सदस्य बन जाता है तो उसे आजीवन भारत सरकार की ओर से पेंशन दी जाती है. आइए जान लेते हैं कि पूर्व सांसदों की पेंशन को लेकर क्या नियम हैं? पूर्व सांसदों को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं और क्या विधायकों के साथ भी ऐसा ही होता है?
वरिष्ठ सांसदों को हर महीने ज्यादा मिलती है पेंशन
संसद के सदस्यों चाहे वह लोकसभा का सदस्य हो या फिर राज्यसभा का, संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन अधिनियम-1954 के तहत पेंशन मिलती है. यह राशि फिलहाल हर महीने 25 हजार रुपए बताई जाती है. इसके अलावा अगर कोई सांसद पांच साल से अधिक समय तक सांसद रहता है यानी जैसे-जैसे कार्यकाल बढ़ता है, उसकी वरिष्ठता का सम्मान करते हुए हर साल 1500 रुपए हर महीने अलग से दिए जाते हैं. यही नहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब सांसद थे, तो उनकी अगुवाई में बनी कमेटी ने पेंशन की राशि बढ़ाने की सिफारिश की थी. इसे 35 हजार रुपए करने का प्रस्ताव किया गया था.
न्यूनतम कार्यकाल की कोई सीमा तय नहीं
सबसे खास बात यह है कि सांसदों की पेंशन के लिए किसी न्यूनतम कार्यकाल की कोई समय सीमा तय नहीं की गई है. यानी कोई एक दिन के लिए सांसद बने या फिर 80 साल की उम्र तक सांसद रहे, उसे संसद सदस्य न रहने पर आजीवन पेंशन मिलती ही रहेगी. यही नहीं, सांसदों के परिवार के लिए भी पेंशन की सुविधा है. यानी पति, पत्नी या सांसद के आश्रित को पेंशन दी जाती है. किसी सांसद या पूर्व सांसद की मौत होने पर उसके पति, पत्नी या आश्रिम को आधी पेंशन ताउम्र दी जाती है.
विधायक-सांसद दोनों की पेंशन साथ मिलती
सबसे अलग नियम तो यह है कि सांसदों और विधायकों को दोहरी पेंशन लेने का भी हक है. मान लीजिए कि कोई विधायक चुनाव जीतकर सांसद बन जाए तो उसे सांसद का वेतन तो मिलता ही है, विधायक की पेंशन भी मिलती है. बाद में उसे पूर्व सांसद-पूर्व विधायक के रूप में दोनों की ही पेंशन मिलती है. ऐसे ही कोई पूर्व सांसद या विधायक मंत्री बन जाता है तो उसे मंत्री पद के वेतन के साथ ही सांसद-विधायक के रूप में मिल रही पेंशन भी मिलेगी.
ट्रेन में मुफ्त यात्रा की आजीवन सुविधा
इसके अलावा पूर्व सांसदों को मुफ्त रेल यात्रा की सुविधा भी मिलती है. अगर कोई पूर्व सांसद एक सहयोगी संग ट्रेन में सफर करता है तो दोनों सेकेंड एसी में फ्री ट्रैवल कर सकते हैं. पूर्व सांसद चाहे तो अकेले फर्स्ट एसी में फ्री यात्रा कर सकता है. राज्य विधानसभाओं और विधान परिषद में भी पेंशन का यही नियम लागू होता है. कोई एक दिन के लिए विधायक चुना जाए या लंबे समय के लिए, उसे पेंशन मिलनी ही मिलनी है. वरिष्ठ विधायकों यानी लगातार कई बार विधायक चुने जाने के बाद मिलने वाली पेंशन राशि में सांसदों की ही तर्ज पर थोड़ी वृद्धि हो जाती है. हालांकि, राज्यों में विधायकों के लिए पेंशन की राशि अलग-अलग है.
इस बार चुने गए सांसदों को इतना मिलेगा वेतन
चलते-चलते आइए संसद के लिए चुने गए माननीयों को मिलने वाले वेतन के बारे में भी जान लेते हैं. पीआरएस इंडिया के डाटा से पता चलता है कि भारत में सांसदों को एक लाख रुपए वेतन मिलता है. ड्यूटी के दौरान प्रतिदिन दो हजार भत्ता अतिरिक्त मिलता है. इनके अतिरिक्त हर महीने 70 हजार रुपये निर्वाचन क्षेत्र का भत्ता दिया जाता है, जबकि हर महीने 60 हजार रुपए कार्यालय खर्च के लिए दिए जाते हैं. यानी केवल वेतन, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और कार्यालय भत्ता मिलाकर ही सांसदों को हर महीने 2.30 लाख रुपए मिलते हैं. प्रतिदिन दो हजार रुपये ड्यूटी भत्ता अलग है. यह भी तय हो चुका है कि एक अप्रैल 2023 से सांसदों का वेतन और दैनिक भत्ता हर पांच साल बाद कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स (लागत मुद्रास्फीति सूचकांक ) के आधार पर बढ़ाया जाएगा.