पटना : ‘1942 क्रांति’ के अग्र-पांक्तेय नायकों में एक पं बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ एक महान स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, एक आदर्श राजनेता और स्तुत्य साहित्यकार भी थे। स्वतंत्रता पूर्व 1937 में बिहार विधान सभा के लिए हुए निर्वाचन में गोड्डा से विधायक चुने गए कैरव जी 1942 के आंदोलन में अंग्रेज़ी सरकार द्वारा गिरफ़्तार कर लिए गए थे और उन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल में बंद रखा गया था। स्वतंत्रता के पश्चात वे 1957 तक विधान सभा के सदस्य रहे, किंतु पटना या देवघर में, जिसे उन्होंने अपना कर्मक्षेत्र बनाया था, एक घर तक नहीं बनाया। एक गाड़ी भी नहीं ख़रीदी। साइकिल पर चला करते थे। वहीं अपने धर्म-पारायण जीवन और आचरण से समाज को मनुष्यता का संदेश देने वाले साधु-पुरुष कपिल सिंह ‘मुनि’ एक ऐसे संत थे, जिन्होंने शब्दों से नहीं अपने आचरण से उपदेश दिया करते थे।

यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, कैरव जी की साहित्यिक और कारयतिक प्रतिभा बहुमुखी थी। उनकी समाज-सेवा, राष्ट्रसेवा और साहित्य-सेवा मानवतावादी और संवेदना प्रधान रहीं। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘आगे बढ़ो’, ‘पश्चाताप’, ‘खादी लहरी’, ‘लवण लीला’, ‘अछूत’, ‘उत्सर्ग’, ‘क़ैदी’, ‘हीरा’, ‘आरती’, काव्य-संकलन ‘अंतर जलन’ तथा आलोचना-ग्रंथ ‘साहित्य-साधना की पृष्ठभूमि’ सम्मिलित है। साहित्य सम्मेलन के प्रचारमंत्री के रूप में उन्होंने तत्कालीन बिहार के सभी ज़िलों में ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलनों को सक्रिए और सार्थक बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वे सम्मेलन के एकादशवें अधिवेशन के अवसर पर संथाल परगना में हिन्दी-प्रचार्राथ गठित उपसमिति के संयोजक बनाए गए थे। आदिम जातियों के बीच हिन्दी के प्रचार में उनके योगदान को सदा स्मरण किया जाएगा। वे देवघर-विद्यापीठ के संस्थापक निबन्धक तथा महेश नारायण साहित्य शोध संस्थान, दुमका के अध्यक्ष रहे।

समारोह का उद्घाटन करते हुए, सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कहा कि कैरव जी एक बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी, एक महान शिक्षाविद, साहित्यकार और राजनेता थे। वे गोड्डा के प्रथम विधायक थे। लगातार तीन बार विधायक रहे लेकिन अपने लिए एक गाड़ी तक नहीं ख़रीदी। आज के राजनेताओं को कैरव जी से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कपिल सिंह मुनि को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण किया और उन्हें एक महान संत बताया।

सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा रत्नेश्वर सिंह, डा पुष्पा जमुआर, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, ई अशोक कुमार तथा मुनि जी के साहित्यकार पुत्र डा आर प्रवेश ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कविसम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, वरिष्ठ कवयित्री सुजाता मिश्र, डा सुषमा कुमारी, सरिता मण्डल, डा रमाकान्त पाण्डेय, डा पंकज कुमार सिंह, शंकर शरण आर्य, नीता सहाय, सुनीता रंजन, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, अरविन्द अकेला, अजीत भारती आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपने काव्यपाठ से श्रोताओं को झूमने पर विवश किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

वरिष्ठ व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता आनन्द मोहन झा, अमित प्रकाश, प्रेम अग्रवाल, डा चंद्रशेखर आज़ाद, रवीन्द्र कुमार सिंह, अमित प्रकाश, भास्कर त्रिपाठी, नन्दन कुमार मीत, कुमारी मेनका, डौली कुमारी, मयंक कुमार मानस आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।