पुरी : हिंदुओं के चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी में आज जगन्नाथ यात्रा निकाली जा रही है। आपने जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में काफी सुना होगा। कई लोग इसके बारे में सब कुछ जानते हैं तो वहीं कुछ लोगों को ना के बराबर जानकारी होती है। तो चलिए बताते हैं कि जगन्नाथ यात्रा के दौरान क्या-क्या होता है? बता दें कि इस परपंरा की शुरुआत 12वीं शताब्दी से हुई थी जो कि राजा अनंतवर्मन ने की थी। बाद में ओडिशा में उन्होंने ही जगन्नाथ मंदिर बनवाया। हर साल आषाढ़ के महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से जगन्नाथ रथयात्रा शुरू होती है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा जगन्नाथ पुरी मंदिर में अपने मंदिर परिसर से निकलकर, रथ पर सवार होकर, अपने भक्तों से मिलने के लिए गुंडिचा मंदिर की यात्रा करेंगे। भक्त इस रथ यात्रा को देखने और एक बार रथ को छूने के लिए दुनिया भर से आते हैं। ये यात्रा कुल 9 दिन चलती है।

15 दिन बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ

यात्रा शुरू होने से ठीक 18 दिन पहले भगवान जगन्नाथ पूर्णिमा पर स्नान करते हैं। ऐसे में यात्रा शुरू करने से पहले ही वह 15 दिन तक बीमार रहते हैं। बता दें कि यह रथयात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से ही निकलती है और आखिर में गुंडिचा मंदिर पहुंचती है। बीमारी के दौरान भगवान जगन्नाथ 15 दिन तक एकांतवास में रहते हैं। इस दौरान भक्त उनके दर्शन नहीं कर सकते हैं। उनका ध्यान रखा जाता है और शरीर पर कई तरह के लेप लगाए जाते हैं। 15 दिन के बाद यानी कि आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्धितीया तिथि में वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाते हैं। भगवान के स्वस्थ होते ही यात्रा शुरू की जाती है और इस उत्सव को लोग नैनासर उत्सव के भी नाम से जानते हैं।

गुंडीचा पहुंचेंगे भगवान जगन्नाथ

बीमारी से ठीक होते ही भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ अपनी मौसी गुंडीचा के यहां जाते हैं। बता दें कि जगन्नाथ मंदिर से लगभग 3 से 4 किमी दूर ही गुंडिचा मंदिर है। इस दौरान मौसी उनकी खूब खातिरदारी करती हैं। गुंडिचा पहुंचते ही भगवान जगन्नाथ का स्वागत उनके पसंदीदा मिठाइयों के साथ होता है।

7 दिन बाद जगन्नाथ मंदिर लौटेंगे भगवान

गुंडिचा में 7 दिन रहने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने मुख्य स्थान यानी कि जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं। इसके ठीक एक दिन बाद ही जगन्नाथ पुरी में देवशयनी का एक कार्यक्रम किया जाता है। इस दौरान भक्त मंदिर में खूब पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद भगवान चार महीने के लिए योगनिद्रा में जाते हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का पूरा शेड्यूल

  • 27 जून, शुक्रवार – रथ यात्रा की शुरुआत
    भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग-अलग भव्य रथों पर सवार होकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर की ओर यात्रा करते हैं। हजारों भक्त भारी रस्सों से इन रथों को खींचते हैं। रथ पर चढ़ाने से पहले पुरी के राजा ‘छेरा पन्हारा’ की रस्म निभाते हैं, जिसमें वे सोने के झाड़ू से रथ का चबूतरा साफ करते हैं।
  • 1 जुलाई, मंगलवार – हेरा पंचमी
    जब भगवान गुंडिचा मंदिर में पाँच दिन बिताते हैं, तब पाँचवें दिन देवी लक्ष्मी नाराज़ होकर भगवान जगन्नाथ से मिलने आती हैं। यह रस्म हेरा पंचमी कहलाती है।
  • 4 जुलाई, शुक्रवार – संध्या दर्शन
    गुंडिचा मंदिर में विशेष दर्शन का आयोजन होता है। इस दिन भक्तजन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन करते हैं और इसे बड़ा शुभ अवसर माना जाता है।
  • 5 जुलाई, शनिवार – बहुदा यात्रा
    भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ रथों पर सवार होकर वापस जगन्नाथ मंदिर की ओर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को बहुदा यात्रा कहा जाता है। रास्ते में वे मौसी माँ के मंदिर (अर्ध रास्ते में) रुकते हैं, जहाँ उन्हें ओड़िशा की खास मिठाई ‘पोडा पिठा’ का भोग लगाया जाता है।
  • 6 जुलाई, रविवार – सुना बेशा
    इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है। यह अत्यंत भव्य श्रृंगार होता है जिसे देखने हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
  • 7 जुलाई, सोमवार – अधरा पना
    इस दिन भगवानों को एक विशेष मीठा पेय ‘अधरा पना’ अर्पित किया जाता है, जो बड़े मिट्टी के घड़ों में तैयार होता है। इसमें पानी, दूध, पनीर, चीनी और कुछ पारंपरिक मसाले मिलाए जाते हैं।
  • 8 जुलाई, मंगलवार – नीलाद्रि विजय (समापन)
    यह रथ यात्रा का अंतिम और सबसे भावनात्मक दिन होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वापस अपने मुख्य मंदिर में लौटते हैं और गर्भगृह में पुनः स्थापित होते हैं। इसे ‘नीलाद्रि विजय’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है – “नीलाचल (पुरी) की पुनः विजय”।

जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति का रहस्य

जगन्नाथ मंदिर से जुड़े कई रहस्य हैं, जैसे भगवान की मूर्ति हर 12 साल में बदली जाती है। 12 साल में अधिकमास के समय यह किया जाता है और उस समय पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि तीनों की मूर्तियों को बदला जाता है. जिसके बाद वहां काष्ठ की मूर्ति स्थापित की जाती है। सिर्फ पुजारी ही मंदिर में रहते हैं और मंदिर में उस समय कड़ी सुरक्षा रहती है।

सिंहद्वार का रहस्य

आपको बता दें कि मंदिर में एक सिंहद्वार है। ऐसा कहा जाता है कि जब इस सिंहद्वार में कदम रखते हैं, तो बाहर से समुद्र की लहरों की आवाज नहीं आती है। इसके अलावा इसके आसपास चिताओं की गंध भी इसके अंदर कदम रखने पर समाप्त हो जाती है।