पटना : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले 18 वर्षों से बिहार के चेहरे पर विकास की लाली मल रहे हैं। लोग गदगद हैं। अब लोग उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। उनके कार्यकर्ताओं में प्रधानमंत्री के नाम पर गुदगुदी होती है। कभी सुशील मोदी नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री मटेरियल मानते थे। अब कुछ और लोग प्रधानमंत्री मटेरियल मानने लगे हैं। ये नये लोग उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर धकेल कर खुद मुख्यमंत्री मटेरियल के लिए बेताब हैं। फिलहाल बेताज हैं।
लेकिन नीतीश कुमार की अपनी परेशानी हैं। उनकी एक अंतरात्मा है। मौके-बेमौके जाग जाती है। उन्हें बेचैन कर देती है। अंतरात्मा का निवास राजगीर में है। लेकिन पटना आने में देर नहीं लगती है। याद किये और हाजिर। जुलाई, 2017 में अंतरात्मा झटके से जाग गयी थी। एक शाम राजद और कांग्रेस के समर्थन वाली सरकार का इस्तीफा दे दिया। राजभवन गये और इस्तीफा सौंप कर लौट आये। राजभवन से राजनिवास लौटने से पहले वे मीडिया वालों से खूब बातचीत की, मूड फ्रेश था। जैसे मच्छर मारने वाली अगरबत्ती से परेशान कोई व्यक्ति दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया हो और राहत की सांस ली हो। उन्होंने बड़ी इत्मिनान से कहा- अंतरात्मा की आवाज पर इस्तीफा दिया है। उन्होंने भाजपा की आवाज नहीं कहा था, लेकिन अगली सुबह भाजपा को साथ लेकर मुख्यमंत्री बन गये। दो दिन बाद उन्होंने राजनिवास में बने नेक संवाद नामक सभागार में मीडिया से बातचीत की। खूब बतियाये। इस दौरान उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी को अब कोई हरा सकता है, असंभव। और अब पांच साल बाद नरेंद्र मोदी को हराने का अभियान चला रहे हैं। उनकी अंतरात्मा ने पलटी मार दी है। अब प्रधानमंत्री को हटवाने के लिए प्रतिबद्ध है।
नीतीश कुमार की एक और खास विशेषता है। सत्ता की गाय खुद पालते हैं, दूध-मलाई का सौदा भी खुद करते हैं, लेकिन गाय के लिए चरवाही यानी कुट्टी, खरी और चारा का जिम्मा अपने पड़ोसी को सौंप देते हैं। दूध-मलाई का हिस्सेदार चरवाहा को भी मानते हैं, जितना दिया उतना रखो। खटाल पर मालिकाना हक सब दिन जदयू का रहा है। 18 वर्षों के शासन काल में नीतीश कुमार कम से कम चार बार चरवाहा बदल चुके हैं। और चमत्कार देखिये, चरवाहा भी जेठ का गधा। उसे लगता है कि सरकार हमही चला रहे हैं। एनडीए के नाम पर भाजपा को सरकार होने का भ्रम हो जाता है और महागठबंधन के नाम राजद को सरकार होने का भ्रम हो जाता है। पिछले 18 वर्षों में चरवाहों की जगह बदलती रही है, पर खटाल का मालिक बमबम। उनकी जगह नहीं बदलती है। विधान मंडल में गुर्राते सिर्फ भाजपा और राजद वाले ही हैं, जदयू वाले बस मुस्कुराते हैं।
भारत के इतिहास में पहली बार बिहार में सत्ता पक्ष के विधायकों ने स्पीकर का बहिष्कार किया। इतना ही नहीं, विधान सभा में पुलिस के हाथों मार खाने का सौभाग्य भी बिहार के विधायकों को प्राप्त हुआ है। आपने हनुमान कूद का नाम सुना होगा। अभी देश में प्रधानमंत्री कूद चल रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रधानमंत्री कूद का पूर्वाभ्यास शुरू हो गया है। कोई पैर जोड़नो का भरोसा दिला रहा है तो कोई पैर तोड़ने की जुगाड़ भी लगा रहा है। अपने मुख्यमंत्री भी प्रधानमंत्री कूद में शामिल हैं। मोदी मुक्त और नीतीश युक्त भारत। उनका सपना है। इस सपने को हवा भी दी जा रही है। नीतीश कहते हैं कि हमारी अब कोई इच्छा नहीं है, मतलब प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं है। 2020 में तीसरे स्थान की पार्टी के मुखिया बनने के बाद उनकी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा नहीं थी, लेकिन भाजपा वाले जबरिया मुख्यमंत्री बना दिये थे। लोकसभा चुनाव के बारह महीने बाकी रह गये हैं। प्रधानमंत्री कूद की रेस धारदार होती जा रही है। सतुआन के बाद नीतीश कुमार देश की यात्रा पर निकलेंगे। विपक्षी दलों को जोड़ेंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जुड़ना चाहता कौन है। देश भ्रमण की बेचैनी अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी है। लेकिन जिनती तत्परता नीतीश कुमार की दिख रही है, वह अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों में नहीं दिख रही है और कांग्रेस भी प्रधानमंत्री बनने या बनाने की हड़बड़ी में नहीं दिख रही है।