पटना : “जनक नंदिनी की बहन हूँ, कृपया सुनें राम ! आप भी सुनें!” —— “परिपूर्ण जीवन की परिभाषा है स्त्री! अनगिनत पहलुओं को हरिदाय में समेटे दहलीज़ के रूप-रंग को निहारती स्त्री!”—– “आज फिर आयी पुश्तैनी गाँव! घर की यादों की कतरनों की रफ़्फ़ू करने !
ऐसी ही मर्म-स्पर्शी काव्य-पंक्तियों से मुम्बई से पधारी वरिष्ठ कवयित्री और पत्रिका ‘विरासत’ की संपादिका रागिनी देवी प्रसाद ने पटना के प्रबुद्ध श्रोताओं का हृदय छीन लिया। गुरुवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में एकल काव्य-पाठ ऋंखला ‘मैं और मेरी कविता’ के इस अंक की कवयित्री श्रीमती रागिनी के कंठ-स्वर की गम्भीरता और सरसता ने भी श्रोताओं को अभिभूत किया। आरंभ में सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने अंग-वस्त्रम से कवयित्री का अभिनन्दन किया।
अपने काव्य-पाठ का आरंभ श्रीमती रागिनी ने इन पंक्तियों से किया कि “नित्य भोर सिया का अवलोकन मनन करती हूँ। सिया-चरित की प्रतिछाया बनना चाहती हूँ! मैं जनक-नंदिनी की बहन हूँ!” । स्त्री-मन और उसकी प्रवृत्तियों को स्वर देने वाली इन पंक्तियों को भी तालियों से प्रोत्साहन मिला कि “कंधे पर ज़िम्मेदारी टाँगती/ घर आती ही दहलीज़ निहारती/ कंधे से पर्स उतारती/ अनगिनत पहलुओं को हृदय में समेटे/परिपूर्ण जीवन की परिभाषा है स्त्री!”
कवयित्री रागिनी ने प्रेम, ऋंगार और नारी-सशक्तिकरण की अनेक कविताओं के पाठ किए। “द्रौपदी का चीर हरण हो रहा” शीर्षक कविता का भी श्रोताओं ने हृदय से स्वागत किया। उनके द्वारा संपादित साहित्यिक पत्रिका ‘विरासत’ के नूतन अंक का लोकार्पण भी किया गया। विशिष्ट श्रोता के रूप में वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार डा ध्रुव कुमार, लेखिका डा पूनम आनन्द, कुमार अनुपम, अनीता मिश्र सिद्धि, डा अर्चना त्रिपाठी, प्रवीर कुमार पंकज, रुचिका प्रसाद, रोहित रंजन, आनन्द कुमार, सुधांशु रंजन, मधु कुमारी, नन्दन कुमार मीत, डौली कुमारी, मुकेश कुमार आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
