पटना : भोजपुरी के दो अविस्मरणीय गीत ‘बटोहिया’ और इसी तर्ज़ पर लिखा गया दूसरा गीत ‘फिरंगिया’, स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार समेत पूर्वांचल के समस्त स्वतंत्रता सेनानियों के लिए ‘राष्ट्र-गीत’ बन गए थे। पहली रचना ‘बटोहिया’, अप्रतिम कवि बाबू रघुवीर नारायण के कंठ से प्रस्फुटित हुई तो उन्हीं से अनुप्राणित होकर प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद ने ‘फिरंगिया’ नाम से दूसरा गीत रचा। पहले ने संसार को भारत के दिव्य सौंदर्य और महिमा से परिचय कराकर देशवासियों में देशभक्ति का बीज अंकुरित किया तो दूसरे ने अंग्रेज़ी दासता की पीड़ा और आक्रोश की अभिव्यक्ति की। शब्द अलग-अलग थे किन्तु दोनों की धुन एक थी और भाव भी एक थे। ये दोनों साहित्य सम्मेलन से भी उसी भावना के साथ जुड़े हुए थे, जिस भावना से स्वतंत्रता-आंदोलन से।यह बातें गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, दोनों कवियों की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही।
डा सुलभ ने कहा कि, एक भी महान और लोकप्रिय रचना किसी व्यक्ति को साहित्य-संसार में अमर कर सकती है, ‘बटोहिया गीत’ और बाबू रघुवीर नारायण इसके देवोपम उदाहरण हैं। आज के कवियों के लिए यह अत्यंत मूल्यवान दृष्टांत भी है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार बाबू रघुवीर नारायण की एक रचना ‘बटोहिया’ ने उन्हें हिन्दी साहित्य में अमर कर दिया, उसी प्रकार मनोरंजन बाबू को भी उनका गीत ‘फिरँगिया’ ने उन्हें स्थायी यश प्रदान किया। इस गीत ने अंग्रेजों के मन में भय उत्पन्न कर दिया था। अंग्रेज़ी सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी थी। साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष के रूप में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है।समारोह का उद्घाटन करते हुए, बिहार के पुलिस महानिदेशक आलोक राज ने कहा कि हमारे देश की स्वतंत्रता के आंदोलन में साहित्यकारों की बड़ी भूमिका रही। कवियों ने प्रेरणा दी और आंदोलन को बल दिया। उन्हीं महान साहित्यकारों में बाबू रघुवीर नारायण और मनोरंजन प्रसाद सिन्हा का नाम बहुत आदर से लिया जाता है। मनोरंजन बाबू के भोजपुरी गीत ‘फिरंगिया’ ने धूम मचा रखी थी। उस गीत के प्रभाव से भयभीत होकर अंग्रेज़ी सरकार ने उस गीत पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। मनोरजन बाबू के गीतों में राष्ट्रीय चेतना तो है ही, उनमें प्रकृति-प्रेम और अध्यात्म अपने उत्कर्ष के साथ दिखाई देता है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘बटोहिया-गीत’ का सस्वर पाठ किया। बाबू रघुवीर नारायण की पौत्र-वधू उर्मिला नारायण ने कहा कि, देश में राष्ट्रीयता का भाव जगाने और जग-जागरण में, ‘बटोहिया-गीत’ की बड़ी भूमिका रही। इस गीत की चर्चा भारत की सीमाओं से आगे निकल कर मौरिशस, सूरिनाम, फ़ीजी, त्रिनिदाद, टोबैगो तक पहुँची। वहाँ के लोग भाव-विभोर होकर यह गीत सुना करते थे। गांधी जी आग्रह पूर्वक इसे सुना करते थे। उन्हीं की प्रेरणा से बनैली नरेश कीर्त्यानंद सिंह जी ने साहित्य सम्मेलन के भवन के निर्माण में एक मुश्त दस हज़ार रूपए की राशि प्रदान की थी। बाबू रघुवीर नारायण के पौत्र प्रताप नारायण ने कहा कि ‘बटोहिया’ गीत को पूर्वांचल का ‘राष्ट्रीय गीत’ का स्थान प्राप्त है। बाबू रघुवीर नारायण को हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य में भी अधिकार प्राप्त था। उन्हें बिहार में अंग्रेज़ी का प्रथम कवि माना जाता है। मनोरंजन बाबू की दौहित्री नीना श्रीवास्तव तथा पौत्रवधू डा रचना सहाय ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए ।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी बच्चा ठाकुर, डा ओम् प्रकाश जमुआर, कुमार अनुपम, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा पूनम आनन्द, डा पुष्पा जमुआर, डा शालिनी पाण्डेय, विभा रानी श्रीवास्तव, इन्दु उपाध्याय, जय प्रकाश पुजारी, शायरा तलत परवीन, शमा कौसर ‘शमा’, शंकर शरण मधुकर, मधु रानी लाल, शुभ चंद्र सिन्हा, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, ई अशोक कुमार, चितरंजन भारती, अर्जुन प्रसाद सिंह आदि कवियों और कवयित्रियों ने काव्यांजलि अर्पित की। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर, प्रो राम ईश्वर सिंह, डा चंद्र्शेखर आज़ाद, बाँके बिहारी साव, रजनी नारायण, अमन वर्मा, दुखदमन सिंह, नरेंद्र झा, लाल बाबू विद्यार्थी आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।